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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४७७

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कांग्रेसका संविधान

अगर खिलाफत समितियोंने हिंसाको रोकनेके लिए निरन्तर और यथासम्भव अधिकसे-अधिक प्रयास न किया होता तो ऐसी एक नहीं, अनेक हत्याएँ हो चुकी होतीं। लेकिन अपने ही धर्म और सम्मानकी खातिर हमारा यह कर्त्तव्य हो जाता है कि जबतक हमने असहयोगको अपना रखा है तबतक हिंसाको रोके रहें। किन्तु हत्यारेकी भर्त्सना करनेवाले इस चाटुकारिताभरे प्रस्ताव से मैं सहमत नहीं हूँ।

मैं देखता हूँ, मेरे भाषणकी रिपोर्ट तैयार करने में भी गलती की गई है। मैंने यह कभी नहीं कहा कि जब हम तलवार उठाना चाहेंगे तो उसकी पूर्वसूचना दे देंगे। मैंने जितने जोरदार शब्दों में हो सकता था, इस हत्याकी भर्त्सना की और कहा कि आज जब इस्लामकी अनेक मानी हुई धार्मिक संस्थाओंने लोगोंको सुरक्षाका आश्वासन दे रखा है, ऐसी हालतमें एक निर्दोष व्यक्तिकी हत्याके अपराधको किसी भी तरह क्षमा करनेसे इस्लामकी प्रतिष्ठाको बट्टा लगेगा। मैंने यह भी कहा कि स्वयं मेरा व्यक्तिगत धर्म तो अपने शत्रुके प्राण लेनेकी अनुमति कभी नहीं देता। लेकिन साथ ही मैंने यह भी कहा कि इस्लाम बल्कि लाखों हिन्दुओंकी भी ऐसी मान्यता है कि कुछ विशेष परिस्थितियोंमें शत्रुको मारना उचित हो सकता है। और मैंने कहा कि जब भारत के मुसलमान तलवार उठाना चाहेंगे तो स्पष्ट शब्दोंमें उचित पूर्वसूचना देनेकी ईमानदारी वे अवश्य दिखायेंगे।

और जो बात मैं अक्सर कहता रहा हूँ, उसे एक बार फिर दोहराता हूँ कि मुसलमानोंमें जो लोग सबसे नेक और निर्भीक (मौलाना अब्दुल बारी और अलीबन्धुओंको मैं ऐसा ही मानता हूँ) हैं, वे हिंसाको रोकने के लिए अपने तई पूरा प्रयास कर रहे हैं। मैं सचमुच ऐसा मानता हूँ कि ऐसे लोगोंने इतना कठिन प्रयास न किया होता तो इस देश में हिंसा के विस्फोटको नहीं रोका जा सकता था। मैं यह भी स्वीकार करता हूँ कि अगर ऐसा होता तो वह न इस्लाम के लिए हितकर होता और न भारतके लिए। उसका यही परिणाम होता कि इस्लाम और भारतको कोई सम्मान दिये बिना सरकारको निर्ममतापूर्ण दमनका अवसर मिल जाता।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३-११-१९२०
 

२३९. कांग्रेसका संविधान

कांग्रेस संविधान समितिने आखिरकार सर्वसाधारणकी जानकारीके लिए अपना विवरण प्रकाशित करके अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की चर्चा में मददके विचारसे सार्वजनिक संस्थाओंको उसपर अपनी-अपनी राय भेजनेके लिए आमन्त्रित किया है। यह बड़े दुःखकी बात है कि यद्यपि संविधान समितिमें बहुत कम सदस्य थे, फिर भी वे प्रयत्नोंके बावजूद एक-साथ मिलकर कभी नहीं बैठ सके। सम्भव है, इसमें किसीका दोष न रहा हो। वैसे विवरणका मसविदा सभी सदस्योंकी नजरोंसे गुजरा है और

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