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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४८१

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निर्दोष भूल

नहीं है। मैं भाषण नहीं देना चाहता। मैं तो सिर्फ एक आलिमके[]रूपमें बोलना चाहता हूँ इसलिए बैठे-बैठे ही बोलूँगा। इस हत्या के सम्बन्ध में अनेक व्यक्तियोंने अनेक विचार व्यक्त किये हैं। उनमें से कुछ तो इस बारे में कुछ समझते ही नहीं हैं। मैं तो सिर्फ अपने दीनके फरमानको जिस रूप में जानता हूँ, उसको ध्यान में रखते हुए अपनी राय व्यक्त करना चाहता हूँ। कुछ लोग कहते हैं कि हत्या करनेवाला जहन्नुममें जायेगा। मैं ऐसा कदापि नहीं कह सकता। व्यक्तिके दिलको सिर्फ खुदा ही जानता है। इस व्यक्तिने किस लिए और किस तरह हत्याकी इसकी मुझे क्या खबर? इस्लाम में दुश्मनको मारनेका स्पष्ट रूप से हक दिया गया है। दुश्मनोंमें निर्दोष कौन और दोषी कौन है, इसका विचार नहीं किया जा सकता। लड़ाई में दुश्मनकी कौमके सभी व्यक्तियोंकी हत्या कर सकनेका कानून प्रसिद्ध है। श्री विलोबी काफिर थे अर्थात् दुश्मनकी कौमके थे। और अगर इस समय [अंग्रेजोंके विरुद्ध] जिहादकी घोषणा हुई होती और ऐसे व्यक्तिकी भी कानूनन हत्या की गई होती तो हत्या करनेवाले व्यक्तिको अवश्य शहीद माना जाता। लेकिन इस समय हमने जिहादकी घोषणा नहीं की है। हमें गांधीजीने दूसरा रास्ता बताया है और हम जान गये हैं कि इस समय जिहाद बोलकर हम इस्लामकी रक्षा नहीं कर सकते, हममें वैसी शक्ति नहीं है। गांधीजीने हमसे 'तर्फे मवालात' 'करने को कहा है और हमने इसे पसन्द किया है। उसके लिए 'कुरान शरीफ 'में स्पष्ट रूप से निर्देश दिया हुआ है। पैगम्बर साहबने भी तेरह वर्षतक 'तर्फे मवालात'[]को इख्तियार किया था। मैंने स्वयंको गांधीजीको सौंप दिया है, इस कारण कितने ही मुसलमान मुझसे नाराज हो गये हैं, लेकिन मैं कह सकता हूँ कि वे मुझे बिलकुल नहीं समझते। जिन काफिरोंने इस्लामको खतरेमें डाला है उनसे मित्रता करनेकी अपेक्षा में हिन्दुओं की दोस्तीको अधिक पसन्द करता हूँ और उनकी खातिर गोरक्षाको भी जायज समझता हूँ। पैगम्बर साहबने खुद बुतपरस्तोंसे दोस्ती की थी। जबतक खिलाफत कमेटी और आलिम लोग जिहादका फरमान नहीं निकालते तबतक हम तलवार नहीं उठा सकते और इसी कारण श्री विलोबीकी हत्यापर मुझे दुःख होता है। अगर मुझे पता चलता तो मैं इस हत्याको जरूर रोकता; लेकिन ऐसा कहना और हत्या के प्रति अपनी नापसन्दगी जाहिर करना एक बात है तथा हत्या करनेवाला जहन्नुममें जायेगा, यह कहना दूसरी बात है। इस आदमी के लिए जहन्नुममें जगह है अथवा जन्नत में, इसका फैसला तो सिर्फ खुदा ही कर सकता है। हम तो इतना ही कह सकते हैं कि इस हत्या से खिलाफत-की लड़ाईको धक्का पहुँचा है और हमें ऐसे कामोंको रोकना चाहिए। मैंने तो मौलाना साहबके भाषणको उपर्युक्त ढंग से समझा है। इससे हम देख सकते हैं कि जबतक शार्टहैण्ड रिपोर्ट न ली जाये तबतक महत्त्वपूर्ण भाषणोंकी रिपोर्ट

  1. जानकार।
  2. असहयोग।