देना बहुत जोखिमका काम है। श्री महादेवकी रिपोर्टसे अनजाने ही मौलवी साहबके प्रति अन्याय हो गया है। खूनी शहीद हो गया, ऐसा मौलाना साहबने नहीं कहा और मेरे खयाल से तो ऐसा कहने से इस्लामकी प्रतिष्ठाको भी धक्का पहुँचता। मेरी नम्र राय में जव जिहाद नहीं बोला गया है, उस समय कोई भी मुसलमान अच्छे उद्देश्य और खिलाफतकी खातिर अपनी जवाबदेहीपर हत्या करे तो वह शहीद नहीं हो सकता। ऐसा व्यक्ति जहन्नुममें जाने लायक न हो, यह जुदा और समझमें आ सकनेवाली बात है। लेकिन शहीद होना तो अच्छे कामका खास इनाम है। जिस कार्य-खिलाफतको धक्का पहुँचनेकी बातको हम स्वीकार करते हैं उस कार्यके करनेसे शहीद नहीं बना जा सकता। इसलिए मौलाना साहबके भाषणमें, खूनी शहीद हो गया, यह वाक्य कदापि नहीं हो सकता था, ऐसी मेरी मान्यता है।
श्री महादेवकी रिपोर्ट में दूसरी भूल मैं यह देखता हूँ कि मौलाना साहबने यह बताया है कि 'कुरान शरीफ'के फरमानकी अपेक्षा उन्होंने मेरे फरमानको अधिक पसन्द किया है। किसी भी मुसलमानको 'कुरान शरीफ के फरमान से दूसरे मुसलमान द्वारा दिया गया फरमान ही पसन्द नहीं आ सकता तो फिर एक हिन्दूके फरमानकी तो बात ही क्या? जिस तरह हिन्दुओंके लिए 'गीता' अथवा 'वेद' अन्तिम आदेश हैं उसी तरह मुसलमानोंके लिए 'कुरान शरीफ' है। और फिर मौलाना साहब-जैसे विद्वान्को में फरमान दे ही नहीं सकता। मैं तो खिलाफत समिति-तक को आदेश नहीं दे सकता। मैं तो केवल सलाहकार ही हो सकता हूँ, और हूँ।
एक भूल और हो गई है। श्री महादेवने मौलाना साहबके अन्तिम वाक्यको इस तरह उद्धृत किया है:
- लेकिन जबसे मैं इस संघर्षमें शामिल हुआ हूँ तबसे हिन्दुओं और गायके समान मुझे और कोई वस्तु प्रिय नहीं है।
मौलाना साहबने ऐसा कहा, यह मुझे याद नहीं आता और मैं मानता हूँ कि वे ऐसा कदापि नहीं कह सकते। वे सिर्फ इतना ही कह सकते हैं कि अन्य लोगोंकी अपेक्षा उन्हें हिन्दू अधिक पसन्द हैं। इसके अतिरिक्त इस भूलकी उपर्युक्त दो भूलोंसे कोई तुलना नहीं की जा सकती। पहली भूलसे लोगोंको अनजाने ही हत्या करने की प्रेरणा मिलती है; और ऐसी प्रेरणा देनेका मौलाना साहबका कोई विचार नहीं था और न है, ऐसी मेरी दृढ़ मान्यता है। दूसरी भूलसे मौलाना साहबके प्रति अन्याय होता है और मुसलमानोंको भी दुःखी होनेका कारण मिलता है। कोई मुसलमान 'कुरान शरीफ'के फरमानकी अपेक्षा किसी अन्य व्यक्तिके फरमानको अधिक पसन्द करे, यह विचार अपने धर्मके प्रति सजग मुसलमानोंके लिए असह्य है।
'नवजीवन' को ध्यान से पढ़नेवाले पाठकोंको मुझे यह बतानेकी जरूरत नहीं कि श्री महादेवने अपनी रिपोर्टके नीचे जो टिप्पणी दी है उसमें उन्होंने अपना और मौलाना साहबका पूरा-पूरा बचाव कर लिया है। वे कहते हैं:
- इस तरह मैंने अपने शब्दोंमें मौलाना साहबकी दलीलोंको रखा है। इसमें दोष होनेकी सम्भावना है, लेकिन इन्हें मैंने अपनी समझ और स्मृतिके आधारपर