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२४१. भाषण : नासिकमें[१]

४ नवम्बर, १९२०

भाइयो,

इस समय इस पवित्र स्थानमें मैं आपसे लम्बी बात नहीं करूँगा। मुझे खेद है। कि मेरे भाईके समान मौ॰ शौकत अली इस समय मेरे साथ नहीं हैं। वे और उनके भाई मुहम्मद अली इस समय अलीगढ़में महत्त्वपूर्ण काम कर रहे हैं, इसलिए इस बार उनके बहनोई मुरादाबाद निवासी भाई मुअज्जम अली, जिन्होंने हालमें बैरिस्टरी छोड़ी है, मेरे साथ यहाँ आये हैं।

हमारी कांग्रेसके वर्तमान अध्यक्ष पं॰ मोतीलालजीको नामसे तो आप सब जानते होंगे। पंजाबके मामलेमें उन्होंने कितनी जबरदस्त सेवाएँ की है और कितना त्याग किया है, यह दुनिया जानती है। उनके और पं॰ मालवीयजी के भगीरथ प्रयत्नसे ही पंजाबमें कितने ही बेगुनाह हिन्दू-मुसलमान भाइयोंकी जान बची है। आज भी, लगभग एक लाखकी मासिक आमदनीवाली धड़ल्लेसे चलती वकालत छोड़कर वे भारतकी सेवा में संलग्न हैं।

पिछले दस महीनोंकी घटनाओंसे मुझे विश्वास हो गया है कि आजकल जो हुकूमत हमपर शासन कर रही है, वह केवल राक्षसी है। मैं उसे रावणराज्य कहता हूँ। इसके दो बड़े सबूत लोगोंके सामने मौजूद हैं। पंजाबमें जो अत्याचार किये गये, वे कभी किसीने नहीं सुने होंगे। दूसरे, खिलाफत के मामलेमें दगा देकर भारतके सात करोड़ मुसलमानोंके दिल इस सल्तनतने जिस प्रकार जख्मी किये, वैसा कोई राजा नहीं कर सकता। ऐसी राक्षसी हुकूमतमें रहनेवाली रैयत क्या करे? तुलसीदासने कहा है कि जो असंत हैं, जो बुरे हैं, उनकी असंगतिकी जाये——उनका संग छोड़ा जाये, उनकी मुहब्बत तोड़ दी जाये, उनसे असहयोग किया जाये, उन्हें मदद देना बन्द कर दिया जाये। यह एक यज्ञ है, उसमें जब हम अपना बलिदान देंगे, तभी खुद शुद्ध होंगे और रावणराज्यको मिटाकर रामराज्यकी स्थापना कर सकेंगे। यह रामराज्य ही स्वराज्य है। स्वराज्य स्थापित किये बिना हम इस राक्षसी राज्यसे छूट नहीं सकते।

यह स्वराज्य किस तरह स्थापित किया जाये? हिन्दू-मुसलमानोंमें परस्पर प्रेम और मुहब्बत बढ़ाकर और सहयोग करके। जबतक यह सल्तनत अपने किये हुए पापोंपर पश्चात्ताप न करे, तोबा न करे, तबतक उसके साथ किसी तरहका व्यवहार हमें हराम मानना चाहिए। अंग्रेजोंको काटकर, उनके मकान जलाकर हम इस सल्तनतको मिटा या झुका नहीं सकेंगे, परन्तु उनसे मुहब्बत तोड़कर हम उन्हें मिटा सकते हैं। एक

  1. गांधीजी करवीरपीठके श्रीमद् शंकराचार्यके विशेष निमन्त्रणपर नासिक गये थे; इस सभाकी अध्यक्षता श्रीमद् शंकराचार्यने ही की थी। गांधीजीने अपना भाषण हिन्दीमें दिया था, जो उपलब्ध नहीं है। यहाँ इसका अनुवाद गुजरातीसे किया गया है।