लाख लोग तीस करोड़ लोगोंको मजबूर कर रहे हैं, इसका कारण इतना ही है कि हम स्वयं उनपर मोहित हैं। हम स्वयं मान लेते हैं कि अंग्रेज यहाँ से चले जायेंगे, तो हम आपसमें लड़ मरेंगे। इस भ्रमको हमें एकदम दूर कर देना चाहिए। हमें इन एक लाख अंग्रेजोंके हाथों विवश होनेसे इनकार कर देना चाहिए। हिन्दू-मुसलमानोंको मिलकर खून करनेके बजाय अपना खून बहाकर ही स्वतन्त्र होना चाहिए। यही एक रास्ता है, दूसरा रास्ता नहीं है, यह मैं आपको समझाना चाहता हूँ। शैतानके साथ शैतानीसे नहीं, परन्तु ईश्वरकी मदद लेकर ही लड़ाई जीती जा सकती है, शैतानको मजबूर किया जा सकता है; और ईश्वरकी मदद उसीको मिलेगी, जिसके दिलमें मुहब्बत है।
इस प्रकार आत्मत्याग और कुर्बानीकी नींवपर इमारत खड़ी करनी है——इसके लिए आज हमें इस असन्त राज्यसे अपना सम्बन्ध, उसका दान, उसकी कृपा सब-कुछ छोड़ना चाहिए। उसकी पदवियाँ, उसकी पाठशालाएँ, उसकी नौकरियाँ हराम समझनी चाहिए और जैसे हम जलते हुए घरको छोड़कर निकल जाते हैं वैसे ही और कोई विचार किये बिना सबसे पहले हमें उसमेंसे निकल जाना चाहिए। इस सरकारकी फौज में भी हम भरती नहीं हो सकते। उसने हमारे लिए धारा सभाका जो जाल फैलाया है उसमें भी हमें न फँसना चाहिए। कुछ लोगोंको मैं यह दलील देते देखता हूँ कि सरकार जिस रुपये से पाठशालाएँ चलाती है, वह उसका कहाँ है? वह जनताका ही रुपया है। फिर उस रुपयेसे चलनेवाले स्कूल हम किस लिए छोड़ें? मैं कहता हूँ कि आपका रुपया डाकू लूट ले, उसके बाद भी उसके हाथके रुपयेको आप अपना कैसे कह सकते हैं? और जो सम्पत्ति डाकुओंने आपसे छीन ली, उसका टुकड़ा बादमें वह दानके रूपमें देने को निकाले, तो वह दान आप कैसे ले सकते हैं? जिसने हमारी इज्जत ली, जिसने हमारे मजहबको खतरेमें डालकर बड़ीसे-बड़ी डकैती की है, उसके हाथका दान हम कैसे लें? उसका तो संग छोड़ देना ही हमारा वर्तमान धर्म है। आपसी झगड़ोंके लिए हमें उनकी अदालतोंका आश्रय नहीं लेना चाहिए, और ऐसा करना चाहिए कि उनके द्वारा दी जानेवाली नई धारा सभाओंके उम्मीदवारोंको एक भी मतदाता मत न दे।
हम इतना करें और साथ ही स्वदेशी-धर्मके पालनकी आवश्यकताको समझ जायें तो एक ही वर्षमें स्वराज्य मिल सकता है तथा पंजाब और खिलाफतके मामलोंमें न्याय प्राप्त किया जा सकता है। स्वदेशीकी बात मामूली नहीं है। हिन्दुस्तान इस समय गरीब है, प्रजाके पास खानेके लिए अन्न नहीं है, पहनने के लिए वस्त्र नहीं हैं। मैंने ऐसी कितनी ही स्त्रियाँ देखी हैं जो पहननेके लिए एकसे दूसरा वस्त्र न होनेके कारण नहा नहीं सकतीं। यदि हम चाहते हैं कि हमें पेट भरनेके लिए पर्याप्त अन्न और लज्जानिवारणार्थ शरीर ढकनेके लिए पर्याप्त वस्त्र मिलें तो हिन्दुस्तानके प्रत्येक मनुष्यको स्वदेशी-धर्म स्वीकार करना होगा, प्रत्येक बहनको घरमें चरखा लाना और चलाना पड़ेगा। हमें मिलोंके कपड़ेका उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि मिलोंका कपड़ा ज्यादातर हमारा सबसे ज्यादा गरीब वर्ग काममें लाता है। यदि विलायती