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२४३. भाषण : डेकन जीमखाना, पुनाकी सभामें[१]

५ नवम्बर, १९२०

इस जीमखानेमें परसों गवर्नरको बुलाया गया था और उनसे पुरस्कार वितरण कराया गया था। यह हाल सुनकर मुझे शर्म आई। मैं गवर्नर साहबको जानता हूँ। वे योग्य पुरुष हैं। पंजाबके गम्भीर अत्याचारोंके समय जब पंजाबका हाकिम पागल हो गया था, तब इनका दिमाग ठिकाने रहा था। उन्होंने बड़ी शान्ति रखी थी। यदि हम इस हुकूमतको रखना मंजूर करें, तो यही हाकिम चाहिए। परन्तु इस समय मैं उन्हें अस्वीकार करता हूँ। इसका कारण यह है कि उन्होंने सरकारकी नौकरी नहीं छोड़ी। जिस हुकूमतमें खुदाकी नहीं, परन्तु शैतानकी प्रेरणा काम कर रही है, उसकी नौकरीमें इनके जैसा पुरुष रह ही कैसे सकता है? मेरे पूज्य गुरु गोखले होते और उन्हें गवर्नर बना दिया जाता, तो भी मैं कहता कि जो गवर्नर ऐसी हुकूमतके अत्याचार सहन कर रहा है, उसके पास मैं कभी नहीं जाऊँगा। अच्छेसे-अच्छा सज्जन भी इस हुकूमतमें कुछ नहीं कर सकता। तिलक महाराज, जिन्होंने स्वराज्यके लिए सारी जिन्दगी बर्बाद कर दी, वाइसराय होनेके लायक थे। वे भी इस हुकूमतमें, जिसने [अपनी गलतियोंकी] माफी नहीं माँगी, तोबा नहीं की, वाइसराय होते, तो उन्हें भी मैं सलाम करनेको तैयार न होता। मेरा झगड़ा अंग्रेज-जातिसे नहीं, सल्तनतके विरुद्ध है। यह हुकूमत लम्बी-चौड़ी बातें करती है, परन्तु एकका भी पालन नहीं करती। काव्डन[२]तथा ब्राइटको[३]भुलाकर वह इस समय शैतानियतकी गुलामी कर रही है। जबतक यह स्थिति बनी हुई है, तबतक उसके साथ किसी तरहका सम्बन्ध हमारे लिए हराम होना चाहिए।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १४-११-१९२०
 
  1. महादेव देसाईके यात्रा-विवरणसे संकलित।
  2. रिचर्ड काण्डन (१८०४–१८६५); इंग्लैंडका एक महान् अर्थ-शास्त्री, जिसने १८४६ में इंग्लैंडके अनाज सम्बन्धी कानून (कार्न लॉज) रद कराये थे।
  3. जॉन ब्राइट (१८११–१८८९); प्रसिद्ध अंग्रेज राजनीतिज्ञ और वक्ता। अनाज सम्बन्धी कानून रद करवानेके आन्दोलनके एक प्रवर्तक।