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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४८८

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२४४. भाषण : भवानीपेठ, पूनाकी सभामें[]

५ नवम्बर, १९२०

हिन्दू-मुसलमान दोनोंमें अबतक दुश्मनी चली आ रही है। एकदिल होने की हमने बातें ही की हैं। केवल राजनैतिक कामके लिए ही हमने थोड़ा प्रेम रखा है, परन्तु दिली प्रेम नहीं रखा। अब मैं चाहता हूँ कि हम अपने दिलोंको साफ करके हार्दिक प्रेम बढ़ायें। परन्तु मैं देखता हूँ कि यहाँ तो ब्राह्मण-अब्राह्मणोंके बीच ऐसी ठनी हुई है, जिसे देखकर मुझे कँपकँपी छूटती है। मद्रासमें मैं एक बार ब्राह्मणोंके सामने बोल रहा था। सभा खानगी थी। वहाँ अब्राह्मणोंका सवाल कुछ भिन्न प्रकारका और अत्यन्त जटिल है। वहाँ एक उदाहरण देकर मैंने कहा था कि पंचमों (अछूतों) के प्रति व्यवहारमें तो ब्राह्मण नौकरशाही जितनी ही शैतानियत कर रहे हैं। मैं ब्राह्मणोंके सामने बात कर रहा था, इसलिए मैंने ब्राह्मणोंका दोष बताया। पंचमोंको अस्पृश्य मानना निश्चय ही शैतानियत है। मैंने कहा था कि जबतक हम अपनी शैतानियत नहीं छोड़ देते, तबतक हममें दूसरोंकी शैतानियत मिटानेकी योग्यता नहीं आ सकती। परन्तु मेरा आरोप तो ब्राह्मणोंपर नहीं, हिन्दू जातिपर था। आजकलके ब्राह्मणोंपर नहीं था। स्व॰ गोखलेजी ब्राह्मण थे, लोकमान्यजी ब्राह्मण थे और वे भी अस्पृश्योंको स्पृश्य कहते थे और हमेशा कहते थे कि यदि हम उन्हें अस्पृश्य समझेंगे तो स्वराज्य नहीं चला सकेंगे।

मैंने वहाँ महाराष्ट्रकी तो बात ही नहीं की थी। मैंन मद्रासमें मद्रासके लिए ही जो उद्गार प्रकट किये थे, उनमें से एक शब्दको लेकर अब्राह्मण उसका दुरुपयोग कर रहे हैं। कुछ अब्राह्मण यह भी कहते हैं कि वे हिन्दू नहीं हैं। ऐसे लोगोंको तो ब्राह्मण-अब्राह्मणके झगड़ेमें पड़नेका कोई हक ही नहीं। परन्तु मैं अब्राह्मणोंसे कहता हूँ कि जैसे मुसलमान भाई हमें गालियाँ दें, तो भी हम उनपर फौजदारी मुकदमा नहीं करेंगे, उसी प्रकार अब्राह्मणोंको भी वैसे विचार छोड़ देने चाहिए। यदि ब्राह्मणोंको दबानेके लिए वे इस बुरी सल्तनतके पास जाकर उसकी सहायता माँगेंगे तो वे यह याद रखें कि उन्हें उसीके गुलाम बनना पड़ेगा। अब्राह्मणोंसे मेरी अर्ज है कि वे मेरे नामसे कोई झूठा प्रचार न करें। मुझे पता नहीं कि सत्यशोधक मण्डल क्या है, परन्तु वह यह जाहिर कर रहा है कि मैं वर्णाश्रमका खण्डन करनेवाला हूँ। मैं कहता हूँ कि यह झूठी बात है। मेरे नामसे चाहे जैसी मनगढ़ंत बातें फैलाई गई हैं। मैं कट्टर हिन्दू-वैष्णव हूँ; 'रामायण', 'महाभारत', उपनिषद्पर मेरी अटल श्रद्धा है। मैं अपने शास्त्रोंकी खामी समझता हूँ, परन्तु वर्णाश्रमका कट्टर अनुयायी हूँ। इस तथ्यसे यदि कोई मेरे नामका लाभ उठाना चाहता हो तो भले ही उठाये। यदि हिन्दू ब्राह्मण-अब्राह्मण जैसे भेद करके इस शैतान सरकारकी शरण जायेंगे, तो मेरा यह कहना है कि वे ठोकर खायेंगे और

  1. महादेव देसाई यात्रा-विवरणसे संकलित।