क्या वह फिर ऐसा नहीं करेगा? वहाँके लोग देखनेमें बड़े शक्तिशाली हैं। क्या उनमें अब क्षण-भरकी भी देर किये बिना सरकारको अपना प्रशासन स्वच्छ बनानेपर मजबूर कर देनेकी शक्ति है? ऐसा न समझा जाये कि मैं लिख रहा था स्वदेशीपर और बहककर राजनीतिक विषयपर आ गया हूँ। मेरी स्वदेशीकी भावना इतनी तीव्र है कि भारतसे धन छीननेवाले विदेशी वस्त्रों और उसी तरह उससे उसका आत्मसम्मान छीननेवाले स्मिथ, ओ'ब्रायन, श्रीराम और मलिक-जैसे अधिकारियोंको[१]देखकर मैं अधीर हो उठता हूँ, जिन्होंने उद्धततापूर्वक अपनी छड़ियोंसे औरतोंके बुरके हटाये, निरीह लोगोंको पशुओंकी तरह जंजीरोंसे बाँधा, उनपर बख्तरबन्द गाड़ियोंपर से गोलियाँ बरसाई और अन्य प्रकारसे भी उन्हें आतंकित किया।
यंग इंडिया, ७-७-१९२०
१४. जूनागढ़में पागलपन
जूनागढ़ काठियावाड़की एक मुसलमान रियासत है; काठियावाड़का यह नाम इसलिए पड़ा कि किसी जमाने में वह वीर काठियोंकी[२]भूमि था। उसमें एक सुसंचालित कॉलेज है, जिसका नाम उसके संस्थापक स्वर्गीय वजीर बहाउद्दीनके नामपर पड़ा है। इस कॉलेजमें सिन्धी विद्यार्थी बहुत बड़ी संख्यामें भरती हुआ करते थे—जिनमें अधिकांश मुसलमान विद्यार्थी थे। उस कॉलेजकी खास विशेषता यह है कि उसमें विद्यार्थियोंको निःशुल्क शिक्षा दी जाती है। कुछ दिन हुए, नये नवाबने एकाएक यह आदेश जारी किया कि सभी गैर-काठियावाड़ी विद्यार्थी चौबीस घंटेके अन्दर कॉलेज छोड़ दें। विद्यार्थीगण इस आदेशसे किंकर्त्तव्यविमूढ़ रह गये, लेकिन फिर भी इन बेचारोंको उसी दिन जबरदस्ती रेलगाड़ियों में बैठाकर सिन्ध भेज दिया गया। इन विद्यार्थियोंका अपराध क्या था, यह कोई नहीं जानता। सुना जाता है कि इस पागलपन भरे हुक्मका कारण खिलाफत आन्दोलन है। इस लज्जाजनक कामपर परदा डालनेके लिए [उक्त विद्यार्थियोंमें] हिन्दू विद्यार्थियोंको भी जोड़ दिया गया है।
व्यक्तिश: मैं तो इस निष्कासनकी कार्रवाईका स्वागत ही करता हूँ। इस कृत्यसे जिस नग्न अन्यायका परिचय मिलता है उससे लोगोंको पता लग जायेगा कि खिलाफत आन्दोलनके चारों ओर जो प्रच्छन्न विरोधी शक्तियाँ खड़ी की जा रही हैं, उनका असली स्वरूप क्या है। ये रियासतें स्वयं ही सम्राट्के राज्यकी प्रजा हैं। इसलिए जब सम्राट्के राज्यकी सरकार कोई भयंकर गलती कर बैठती है तब वास्तवमें इन रियासतोंकी दशा उस प्रजासे भी खराब हो जाती है जिसे कोई प्रभुसत्ता प्राप्त नहीं है।