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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४९०

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


यह सल्तनत मर्दोको नामर्द बना रही है। हम नामर्द न होते, स्त्रियाँ वीर पुरुष पैदा करनेवाली होतीं, तो अत्याचार असम्भव हो जाते। मगर मुझे अफसोस है कि आजकल हमारे देशके मर्द नामर्द बन गये हैं। मैं हिन्दुस्तानकी माताओंसे अश्रुपात चाहता हूँ। जबतक वे मर्द पैदा नहीं करेंगी, तबतक देशका उद्धार असम्भव है।...[]परन्तु मर्द पैदा कैसे किये जा सकते हैं? जब स्त्रियोंके दिलोंमें हिम्मत आये, भक्ति आये, श्रद्धा आये, ईश्वर उनके हृदयका पति बने, वे ईश्वरसे ही डरें, मनुष्यसे डरना छोड़ दें, तभी हिन्दुस्तानमें मर्द पैदा होंगे।...[]रावणराज्यको समाप्त करना हो तो रामराज्य पैदा करना चाहिए। रामराज्य प्राप्त करनेकी शक्ति तबतक कैसे आ सकती है जबतक बहनें पार्वती, कौशल्या-जितना तप नहीं करतीं, द्रौपदी, दमयन्ती-जितना धर्म-पालन नहीं करतीं तबतक मर्द पैदा होना असम्भव है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १८-११-१९२०
 

२४६. भाषण : वाईमें[]

६ नवम्बर, १९२०

मद्रासमें[]जो बात कही थी, उसे उलटकर अब्राह्मण उसका दुरुपयोग कर रहे हैं। मैं आप लोगोंसे नम्रतापूर्वक कहता हूँ कि उसका इस झगड़ेसे कोई सम्बन्ध नहीं था। अब्राह्मण यह भी कहते हैं कि हम ब्राह्मणोंको हटा देंगे। उन्हें वे कष्ट भी देते हैं, कई तरहसे तंग करते हैं। परन्तु हमारी हिन्दू संस्कृति ऐसी नहीं कि वह किसीके भी साथ ऐसा बरताव करनेकी इजाजत देती हो। इस संस्कृतिमें पला हुआ कोई भी मनुष्य यह कहे कि मैं हिन्दू नहीं हूँ, इस बातको ही मैं नहीं समझ पाता। मैं यह भी कल्पना नहीं कर सकता कि किसी अब्राह्मणका ब्राह्मणके प्रति द्वेष होगा। मैं अब्राह्मण हूँ; मुझे किसी ब्राह्मण से द्वेष नहीं। मैं 'भगवद्गीता' का अध्येता हूँ और मेरा दावा है कि 'भगवद्-गीता' के सच्चे अभ्यासी के लिए द्वेष और घृणा छोड़ना आसान है। उसमें यह बात भी है कि किसीको जीतना हो, तो प्रेमसे जीतना चाहिए। अब्राह्मणोंसे मैं कहूँगा कि आप हिन्दू संस्कृतिको पहचानते हों, तो झगड़े-टंटे छोड़ दीजिये। ब्राह्मणोंने अन्याय किया हो, तो उसके लिए आप न्याय माँग सकते हैं। आपका प्रथम कर्त्तव्य यह है कि आप यह जाँच करें कि ब्राह्मणोंने आपके साथ क्या-क्या किया और ब्राह्मण नेताओंसे उसका फैसला करनेको कहो। आजकल हिन्दू धर्म में जो अतिशयता है, जो दोष हैं उन्हें सुधारनेका ब्राह्मण प्रयत्न कर रहे हैं। ब्राह्मणोंके जीमें उस बारेमें दुःख है। मैं उन ब्राह्मणोंके विषयमें नहीं बोल रहा हूँ, जो अन्धकारमें पड़े हुए हैं और शास्त्रका उच्चारण मात्र करते हैं।

  1. और
  2. मूलमें ही यहाँ कुछ शब्द छोड़ दिये गये हैं।
  3. महादेव देसाई यात्रा-विवरणसे संकलित। यह नवजीवनके दो अंकोमें प्रकाशित हुआ था।
  4. देखिए "लो कालेज, मद्रासके विद्यार्थियोंसे बातचीत", २२-८-१९२० ।