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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तो पहुँचता ही था—उसी श्रद्धा से आप इस शैतानी सल्तनतकी शिक्षा छोड़ देंगे, तो आपके लिए रामचन्द्रजी और श्रीकृष्ण भगवान् शिक्षाका प्रबन्ध करेंगे।

मुझसे विद्यार्थी कहेंगे कि आपके रामचन्द्रजी कहाँ हैं? अंग्रेजी ढंगकी शिक्षा पाकर, उसका इतिहास पढ़कर हमारे मनमें ऐसे प्रश्न उठने लगते हैं। हमारे विद्यार्थियों का पतन होता जा रहा है, पश्चिमकी विद्यासे हम पश्चिमकी आदतें सीखते हैं और 'शर्म-शर्म' के नारे लगाना सीखते हैं। श्रीमती बेसेंटको आप न चाहते हों, तो भले ही आप उनकी पाठशालाओं में न जायें। परन्तु उनकी सभाओंमें[१] जाकर झगड़ा-फसाद करना तो न हिन्दू-संस्कृतिमें लिखा है और न इस्लामी शरीअत में कहा गया है। हम तालियाँ बजाकर अपना समर्थन प्रकट नहीं कर सकते; शर्म-शर्मकी आवाजें लगाकर हम अपना विरोध प्रदर्शित नहीं कर सकते; [यह तो] केवल व्यवहारसे ही बता सकते हैं। आपको असहयोग करना हो, तो यह समझना चाहिए कि आपके शास्त्र क्या कहते हैं। यह धार्मिक युद्ध है। हम अधर्मको धर्मसे हरा सकते हैं और धर्माचरणसे, अधर्माचरणको रोक सकते हैं।

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आप[२] केवल भारतके सेवक बन जायेंगे, तो आज जितनी सेवा कर रहे हैं उससे चौगुनी कर सकेंगे। जैसे हमारे संन्यासी आहार-मात्र लेकर सन्तोष मानते थे, वैसे ही आप भी देश के लिए एक वर्षका संन्यास ले लीजिये और स्वराज्य प्राप्त कीजिये।

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हिन्दू धर्म में सर्वोत्तम संस्कृति है, उसमें कहा गया है कि सच्चा क्षत्रिय तो वह है, जो मारना नहीं परन्तु मरना जानता है। 'गीता' में मुझे एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण शब्द 'अपलायनम् ' मिला है। जो तलवारसे काम लेता है, उसका किसी समय पीछे हटना सम्भव है। वह ईश्वरपर श्रद्धा न कर बाहुओंपर विश्वास रखता है, इसलिए 'अपलायन' धर्मका पालन नहीं करता। प्रह्लाद आदि अपलायन धर्मका पालन करके शुद्ध क्षत्रिय हो गये, मैं तो यही कहूँगा।

[गुजराती से]
नवजीवन, १४-११-१९२० और २१-११-१९२०
  1. देखिए "कुछ दिक्कतें", ७-११-१९२०।
  2. ये शब्द वकीलोंको सम्बोधित करके कहे गये थे।