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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शर्मकी बात होगी। राष्ट्र केवल मुझपर निर्भर रहकर प्रगति नहीं कर सकता। प्रगति केवल तभी हो सकती है जब लोग मेरे सुझाये हुए रास्तेको समझें और अपनायें। इसी सबब से मैं चाहता हूँ कि लोग पूरा आत्मसंयम रखें और मेरी गिरफ्तारीके दिनको खुशी मनानेका दिन समझें। मैं तो यह चाहता हूँ कि जो कमजोरियाँ आज मौजूद हैं वे भी उस समय न रहें।

मुझे गिरफ्तार करने में सरकारका क्या उद्देश्य हो सकता है? सरकार मेरी दुश्मन नहीं है। क्योंकि मेरे मनमें उसके प्रति लेशमात्र शत्रुता नहीं है। परन्तु उनका विश्वास है कि इस सारे आन्दोलनका कर्त्ता-धर्त्ता मैं ही हूँ; यदि मुझे उनके बीचसे हटा दिया जाये तो प्रजा और शासक दोनों चैनसे बैठ सकेंगे। प्रजा मेरे इशारेपर नाचती है, ऐसी केवल सरकारकी ही नहीं, हमारे कुछ नेताओंकी भी मान्यता है। तब फिर सरकार लोगोंको कैसे जाँचे? लोग सचमुच मेरी सलाह समझते हैं या केवल मेरे भाषणोंकी चकाचौंधमें आ गये हैं, इसका ठीक निश्चय वह किस तरह करे? उसके पास इसका एक यही रास्ता बच रहता है कि वह मुझे गिरफ्तार कर ले अथवा जिन कारणोंसे मैंने इस आन्दोलनकी सलाह दी है, उन्हें दूर करे। परन्तु सरकार सत्ताके मदमें झूम रही है, वह अपना दोष नहीं देखेगी और यदि देखेगी भी तो उसे स्वीकार नहीं करेगी। तब उसके पास एकमात्र यही उपाय बच रहता है कि वह जनताकी शक्तिको मापे। मुझे गिरफ्तार करके वह उसकी शक्ति माप सकती है। यदि जनता इस प्रकार आतंकित हो गई और झुक गई तब तो कहा जा सकेगा कि सरकारने पंजाब और खिलाफतके प्रति जो अन्याय किया, जनता उसके योग्य ही थी। दूसरी ओर यदि जनताने हिंसाका सहारा लिया तो वह सरकारके हाथोंमें खेलना ही होगा। तब उसके हवाई जहाज जनतापर बम बरसायेंगे। उसके डायर उनपर गोलियाँ चलायेंगे और उसके स्मिथ हमारी स्त्रियोंके बुर्के उलटायेंगे। अन्य अधिकारी ऐसे भी होंगे जो लोगोंसे जमीनपर नाक रगड़वायेंगे, उनको पेटके बल रेंगनेपर मजबूर करेंगे, उन्हें कोड़े मारकर यातना पहुँचायेंगे। जनताका डरके मारे झुक जाना या क्रोधमें आकर हिंसाका सहारा लेना एक ही जैसी बुरी चीजें साबित होंगी। वे हमें स्वराज्यकी तरफ नहीं ले जायेंगी। अन्य देशोंमें केवल शस्त्र-बलसे सरकार पलट दी गई है, परन्तु मैंने बहुधा यह स्पष्ट किया है कि भारत उस बलके प्रयोगसे स्वराज्य नहीं पा सकता। तो फिर प्रश्न है कि मेरी गिरफ्तारी के बाद जनताको क्या करना चाहिए? जवाब आसान है। जनताको

१. शान्त रहना चाहिए,

२. हड़तालें नहीं करनी चाहिए,

३. सभाएँ भी नहीं करनी चाहिए

बल्कि

४. जनताको पूर्णतः जागरूक रहना चाहिए। मैं यह आशा अवश्य करूँगा कि

५. सभी सरकारी स्कूल खाली कर दिये जायेंगे और इस तरह बन्द होनेपर मजबूर कर दिये जायेंगे,

६. काफी तादादमें वकील वकालत छोड़ देंगे,