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यदि मैं गिरफ्तार हो जाऊँ?


७. अदालतोंमें चल रहे मुकदमोंका आपसी समझौतेसे निपटारा किया जायेगा,

८. अनेक राष्ट्रीय विद्यालय और महाविद्यालय खोले जायेंगे,

९. लाखों स्त्री-पुरुष केवल हाथके कते-बुने कपड़ेके उपयोगकी दृष्टिसे सभी विदेशी वस्त्र-मात्र त्याग देंगे और जमा विदेशी कपड़ेको बेच देंगे या जला देंगे,

१०. फौज या किसी दूसरी सरकारी सेवामें कोई भरती नहीं होगा,

११. जो लोग अन्य प्रकारसे अपनी जीविका कमा सकते हों वे सैनिक या असैनिक सरकारी नौकरी त्याग दें,

१२. आवश्यकतानुसार राष्ट्रीय कोषोंमें चन्दा दें,

१३. लोग खिताब वापस लौटा दें,

१४. उम्मीदवार चुनावोंसे अलग हट जायें, या यदि चुन लिये गये हों तो अपनी सीटोंसे त्यागपत्र दे दें,

१५. जिन मतदाताओंने अभीतक अपने मनमें फैसला न किया हो, वे तय कर लें कि कौंसिलोंमें कोई प्रतिनिधि भेजना पाप है।

१६. यदि जनता निश्चयपूर्वक इन बातोंपर अमल करे तो उसे सालभर भी स्वराज्यका इन्तजार नहीं करना पड़ेगा।

यदि वह इतनी शक्तिका परिचय दे सके तो हमें स्वराज्य तो मिला हुआ ही है। और ऐसा स्वराज्य मिल जानेपर यदि मैं राष्ट्रके निर्देशपर मुक्त किया जाऊँ तो वह मेरे लिए खुशीकी बात होगी। आज तो मेरी आजादी मेरे लिए कैद-जैसी है।

यदि जनता मेरी रिहाईके लिए हिंसाका प्रयोग करती है, और उसके बाद स्वराज्य हासिल करनेमें मेरी मदद चाहती है तो इससे जनताकी अक्षमता ही सिद्ध होगी। राष्ट्रको स्वराज्य न मैं दिला सकता हूँ और न कोई अन्य व्यक्ति। स्वराज्य तभी प्राप्त हो सकेगा, जब राष्ट्र स्वयं अपनी योग्यता सिद्ध कर देगा।

अन्तमें मैं कहना चाहता हूँ कि सरकारको दोष देना व्यर्थ है। हमें अपने लायक सरकार मिला करती है। यदि हम सुधरते हैं तो सरकारको भी सुधरना ही होगा और जब हम सुधरेंगे स्वराज्य भी हम केवल तभी पा सकेंगे। असहयोग राष्ट्रका सुवरनेके लिए किया गया निश्चय है। क्या राष्ट्र मेरी गिरफ्तारी के बाद अपना यह निश्चय त्याग देगा और सरकारको सहयोग देना शुरू कर देगा? यदि जनता पागल हो जाती है, हिंसा अपनाती है और उसके परिणामस्वरूप वह अपने पेटके बल रेंगती है, जमीनपर नाक रगड़ती है, ब्रिटिश ध्वजको सलामी देती है, उसे सलामी देनेके लिए १८-१८ मील चलकर जाती है, तो फिर यह सहयोग नहीं तो क्या है? रेंगना आदि स्वीकार करनेसे बेहतर तो मर जाना है। किसी भी दृष्टिसे, भली-भाँति सोचिए, जो रास्ता मैंने सुझाया है वही अपनाना जनताके लिए उचित है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ७-११-१९२०