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कुछ दिक्कतें


मैंने सुना है कि एक हिन्दी भाषी महिला मेरी लड़की होनेका दावा करके स्थान-स्थानपर लोगोंको धोखा दे रही है। पहले यह खबर द्वारका से मिली थी, अब सिन्धसे मिली है। एक व्यक्तिने मेरे नामसे चन्दा इकट्ठा किया था। उसे तो जेल ही हो गई। मेरी कोई लड़की नहीं, लेकिन अगर हो भी तो लोगोंको मेरी ऐसी सलाह है कि वे मेरे किसी सम्बन्धीकी, सिर्फ इसी कारणसे कि वह मुझसे सम्बन्धित है, कोई सहायता न करें और न उसका विश्वास करें। यह समय सगे-सम्बन्धियोंको पहचाननेका नहीं, व्यक्तिको पहचाननेका है। जिससे आप परिचित नहीं उसका सम्बन्धके आधारपर विश्वास करनेकी कोई जरूरत नहीं है।

मुझे आशा है कि थोड़े समयके भीतर सव प्रसिद्ध संस्थाएँ अपने निश्चित वक्ताओंके नामोंको प्रकाशित कर देंगी जिससे कि हम हमेशा वक्ताकी पहचान कर सकेंगे। जैसे-जैसे असहकार आन्दोलन रंग पकड़ता जा रहा है वैसे-वैसे तरह-तरहके पाखण्डी अथवा अज्ञानी वक्ताओं और सलाहकारोंसे हमें बचना चाहिए। ऐसा सम्भव है कि थोड़ी-सी भूलके कारण हमें भारी दिक्कतों का सामना करना पड़े।

हमें अनेक कार्य करने हैं, पुरानेको नष्ट करके नवनिर्माण करना है। नये स्कूल खोलने हैं, पंचोंको नियुक्त करना है और पैसा इकट्ठा करना है। यह सब हम तबतक नहीं कर सकते जबतक व्यक्तिको पहचानना नहीं सीख लेते। एक ओर हमें विश्वास करना होगा तथा दूसरी ओर हमें सावधान रहना होगा। हमारे रास्तेमें सबसे बड़ी बाधा यही है कि हम कंकरोंकी तरह रहते हैं; एक होकर काम नहीं कर सकते। हममें दूसरोंको अपनी ओर आकर्षित करने अथवा दूसरोंसे आकर्षित होने की शक्ति नहीं है। जहाँ हम आकर्षित होते हैं वहाँ अन्ध श्रद्धाके वशीभूत होकर होते हैं; श्रद्धाकी जरूरत तो है लेकिन उसके साथ विवेक-ज्ञान भी अवश्य होना चाहिए। चाहे जिस व्यक्तिके भुलावेमें आकर कार्य करना——यह पहली दिक्कत है।

दूसरी दिक्कत यह है कि हम क्रोधमें आकर सारा काम बिगाड़ न दें, ऐसा भय बना रहता है। असहकारवादी और सहकारवादी दो पक्ष हैं। अंकलेश्वरमें एक सहकारवादीने कटु वचन बोले, उसके उत्तरमें असहकारवादीने भी बुरे शब्दों का इस्तेमाल किया। यदि वे इससे आगे बढ़ते तो उसका कुपरिणाम होता। यह तो हमारा आपसी मतभेद अथवा झगड़ा था। लेकिन इस समय सहकारवादको सरकार पसन्द करती है, इस कारण वह सरकारी पक्ष भी बन गया है। सरकारी पक्षमें से कोई व्यक्ति आकर झगड़ा करनेके इरादेसे ही कुछ अपशब्द बोले, हम उसका जवाब दें, मार-पीट हो, खून भी हो तो इससे किसका नुकसान होगा। सरकारको खून-खराबी करनेका अवसर मिले तो वह उससे तनिक भी न चूके, ऐसी मेरी मान्यता है। स्वराज्यके सम्बन्धमें हम चाहे कैसे भी स्वतन्त्र विचारोंको अभिव्यक्त क्यों न करें, इससे सरकार हिंसा नहीं कर सकती, हिंसा तो वह तभी करेगी जब हम सरकारके आदमियोंके भड़कानेपर खून करेंगे। स्वामी श्रद्धानन्दजी मानते हैं कि दिल्लीमें अप्रैल मासमें हमसे अगर कोई भूल हुई है तो उसका मुख्य कारण सरकारी आदमियोंका जनताको भड़काना था। इसलिए हमारे लिए सहल मार्ग यही है कि पर्याप्त कारण