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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/५०३

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२५४. भाषण : नेपाणीकी सार्वजनिक सभामें[]

८ नवम्बर, १९२०

मारुतिरावने जो कहा उसे मैंने ध्यानपूर्वक सुना और यह कहना चाहता हूँ कि उन्होंने जो कुछ कहा है वह अर्ध सत्य है। अर्ध सत्य हमेशा भयंकर होता है। मारुतिराव जान-बूझकर अर्ध सत्य कह रहे हैं, सो मैं नहीं कहता। अनेक बार हम बिना समझे अर्ध सत्य कहते हैं और उसीके अनुरूप आचरण करते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि जगत् में ऐसे ब्राह्मण भी पड़े हुए हैं जो दूसरोंको अपना चरणामृत पिलाते हैं, हिन्दुओंके धार्मिक ग्रन्थोंमें ऐसे ग्रन्थ भी मिल जायेंगे जो छलसे भरे हुए हैं। लेकिन हमें अपनी नीर-क्षीर विवेक-बुद्धिसे यह देखना चाहिए कि सत्य कहाँ है और पाखण्ड कहाँ है? थोडे़से ब्राह्मणोंने असत्य भाषण किया, कुछ छलपूर्ण शास्त्रोंकी रचना की गई, इसलिए सारी ब्राह्मणजातिसे द्वेष करना और उनका परित्याग करना आत्मघातक है। अब्राह्मणोंसे मैं शपथपूर्वक कहना चाहता हूँ कि मैंने 'कुरान', 'जेन्द अवेस्ता' और 'बाइबिल' का यथाशक्ति अध्ययन किया है। मेरे मनमें इन सब धर्मोके प्रति मान है, और मैं मानता हूँ कि इन सबमें प्रचुर सत्य विद्यमान है। लेकिन मेरी मान्यता है कि हिन्दू धर्ममें व्रतके रूपमें स्वार्थत्याग और संयमका जितना स्थान है उतना अन्य किसी धर्ममें नहीं है। मैं हिन्दुओंसे कहना चाहता हूँ कि इस यज्ञ-धर्मके लिए, बलिदान-धर्मके लिए हम ब्राह्मणोंके ही ऋणी हैं। इस जगत् में ब्राह्मणोंने जितना बलिदान किया उतना अन्य किसीने नहीं किया है। और आज इस कठिन समयमें भी, इस कलिकालमें जितने बलिदान और जितनी शुद्धताका परिचय उन्होंने दिया है उतना किसी अन्य कौमने नहीं दिया। इसीसे मैं मारुतिराव और अन्य अब्राह्मणोंसे यह कहना चाहता हूँ कि आपने जो दोष दिखाये हैं सो ठीक है लेकिन इसके सम्बन्धमें मुझे एक उपमा याद आती है। दूधमें पड़ा हुआ कचरा तुरन्त दिखाई पड़ता है लेकिन मलिन वस्तुओंमें वह तुरन्त दिखाई नहीं देता। अब्राह्मणोंने ब्राह्मणोंके सम्बन्धमें ऐसे उच्च आदर्श निश्चित कर दिये हैं कि उनके दोष तुरन्त सतहपर तिर आते हैं। मैं तो कहूँगा कि ब्राह्मणकी छोटी-सी भूलको भी बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है, यही ब्राह्मणकी परीक्षा है। ब्राह्मण समाजने जितनी तपश्चर्या की है उतनी किसी देशमें किसी भी एक व्यक्तिने की हो——ऐसी बात मुझे दृष्टिगोचर नहीं होती। फलतः अब्राह्मण भाइयोंसे कहता हूँ कि आप ब्राह्मणोंके दोषोंकी ओर विवेक-बुद्धिसे देखें। ब्राह्मणोंसे असहयोग करके आत्महत्या न करें।

मैं जानता हूँ कि ब्राह्मणोंकी संख्या बहुत कम और अब्राह्मणोंकी बहुत अधिक है। इसीसे किसी शरारती भारतीयने कहा है कि आजकी अंग्रेज सरकार भी एक तरहसे

  1. महादेव देसाईके यात्रा-विवरणसे संकलित। गांधीजीने ये बातें सभा में उपस्थित एक सज्जन द्वारा ब्राह्मणोंकी आलोचनाके उत्तरमें कही थीं।