ब्राह्मण है। क्योंकि एक लाख अंग्रेज तीस करोड़ हिन्दू-मुसलमान और सिखों-जैसे शौर्यवान् और वीर्यवान् लोगोंपर शासन चलाते हैं। लेकिन अंग्रेज सरकार तो तलवारकी धारपर तीस करोड़ व्यक्तियोंको अपने नियन्त्रणमें रखती है। हिन्दुस्तानके ब्राह्मण करोड़ों अब्राह्मणोंको तलवारसे वशमें नहीं करना चाहते, अपितु ये मुट्ठीभर ब्राह्मण केवल अपने संयम-धर्मसे तीस कोटिको अपने नियन्त्रणमें रख सकेंगे। जिस तरह हम इस अत्याचारी साम्राज्यमें अपने संयम-धर्म द्वारा लड़ना चाहते हैं उसी तरह ब्राह्मण भी अपनी पवित्रतासे अपनी स्वतन्त्रताको——शुद्धिको बनाये रख सके हैं। ब्राह्मणोंने आज अपने धर्मको छोड़ दिया है, इसकी मुझे खबर है। फलस्वरूप मैं महाराष्ट्रके ब्राह्मणोंसे प्रार्थना करता हूँ कि अगर आप लोगोंमें श्रद्धा और भक्तिकी फिरसे प्रतिष्ठा हो गई तो फिर मेरे पास आपसे कुछ भी कहनेको नहीं रह जायेगा। मैं अब्राह्मण भाइयोंसे इतना कहना चाहता हूँ कि ब्राह्मणोंसे आप धीरज और शान्ति खोकर जो द्वेष करते हैं, वैसा न करें। इससे किसीको यह नहीं समझ लेना चाहिए कि ब्राह्मणोंके अन्यायकी पूर्णतया उपेक्षा की जाये, मैं किसीको किसी भी प्रकारके अन्यायको सहन करनेकी सलाह नहीं देता। इस अन्यायी साम्राज्यको हम जिस कर्त्तव्यशक्तिसे थकाना चाहते हैं उसी कर्त्तव्यशक्तिसे किसी भी कौमसे न्याय प्राप्त किया जा सकता है। ब्राह्मण धर्म में अंग्रेज सरकारकी सी शैतानियत नहीं है, यह बात एक छोटा बच्चा भी बता सकता है। ब्राह्मण धर्म ऐसा है कि एक छोटा-सा बच्चा भी अपने मनको पवित्र रख, संयम-धर्मका पालन कर बादशाहोंका भी बादशाह बन सकता है। ब्राह्मण धर्म ऐसा है कि अन्त्यजोंमें से जो साधु-सन्त हुए हैं उनकी वे लोग पूजा करते हैं। ब्राह्मणोंमें बहुतसे दोष हैं, आप भले ही उन दोषोंकी आलोचना करें लेकिन उसका न्याय पंचसे करवायें। उन्होंने जगत्की जो सेवा की है उसका सम्मान करते हुए हमें उनके साथ निरन्तर सहकार करना चाहिए, यही हमारा धर्म है।
नवजीवन, १४-११-१९२०