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भाषण : विद्यार्थियोंके समक्ष


मुझे पूरा विश्वास है कि अभी पिछले ही दिन जिन लोगोंने एक्सेल्सियर थियेटरमें सीटियां बजाई थीं उन्होंने अपनी अन्तरात्माके विरुद्ध कार्य किया था और वे जल्दी ही इसके लिए पश्चात्ताप करेंगे। श्री निम्बकरके सम्बन्धमें मुझे निश्चय है कि वे शीघ्र ही सार्वजनिक रूपसे खेद प्रकाश करेंगे, क्योंकि वे जानते हैं कि उन्होंने जो कार्य किया है, वह अनुचित था। जबतक छात्र अहिंसा और अ-घृणाके सिद्धान्तोंको समझ नहीं लेते तबतक वे अपनी मातृभूमिकी, जिसे वे सच्चे हृदयसे प्यार करते हैं, कोई सेवा नहीं कर सकेंगे। आप यह याद रखें कि मेरा असहयोग "अहिंसात्मक असहयोग" है। आयरलैंड या मिस्रके असहयोग आन्दोलनोंसे उसकी कोई समानता नहीं है, यद्यपि उद्देश्य उनका भी करीब-करीब यही था। मैं भारतमें ऐसे तरीके अपनाना पसन्द नहीं करता। आयरलैंड और मिस्र, दोनों जगह हिंसाका प्रचार किया गया, जब कि मैं उसके विरुद्ध हूँ। विरोधीके विरुद्ध चाहे तलवारका उपयोग किया जाये या शरीरबल अथवा दुर्वचनोंका, सभी समान रूपसे दोषपूर्ण हैं और हिंसाके बराबर हैं। हम भारतके लोग इन उपायोंमें से किसीका भी प्रयोग नहीं कर सकते, क्योंकि विरोधीको दुर्वचन कहना हम भारतीयोंके स्वभाव और धर्मके विरुद्ध है। विरोधीको दुर्वचन कहना हिंसात्मक कार्य है और हम जबतक हिंसाका प्रयोग करते रहेंगे तबतक हमारा उद्देश्य अर्थात् स्वराज्य, हमसे दूर ही रहेगा। मैं आपसे फिर कहता हूँ कि आप अपने अन्तरको शुद्ध बनाइये और मैं छात्रोंसे अनुरोध करता हूँ कि वे अपने मनसे ऐसे गलत खयाल निकाल दें।

मैं आपसे दूसरी बात यह कहना चाहता हूँ कि हमारी वर्तमान सरकार निकृष्टतम सिद्धान्तोंपर आधारित है। हमारे शासकोंने पहले तो हमें छला, और अब वे हमें मीठे-मीठे शब्दों और झूठी बातोंसे चुप करानेका प्रयत्न कर रहे हैं। पंजाबके हत्याकाण्डके बाद भी लॉर्ड चेम्सफोर्ड हमारे देशमें सरकारके प्रधान हैं और ओ'डायर भी एक उच्च पदपर आसीन हैं। मेरा तो कहना यह है कि ऐसी सरकारके साथ कोई भी अपने अन्तःकरणसे सहयोग नहीं कर सकता। यदि अंग्रेजोंने ईमानदारीसे अपनी भूल स्वीकार करके क्षमा-याचना कर ली होती तो भारतीय उन्हें बेहिचक क्षमा कर देते। लेकिन वे ऐसा करनेके बजाय उत्तरदायी लोगों द्वारा भारतीय मुसलमानोंको दिये गये वचनका स्पष्ट उल्लंघन करके आगमें घी डाल रहे हैं। अभी हालमें उन्होंने भारतीयोंसे अनुरोध किया है कि वे उस दुःखद घटनाको भूल जायें, लेकिन अब भी उनमें पश्चात्तापका कोई भाव दिखाई नहीं देता और वे स्पष्ट शब्दोंमें अपना दोष स्वीकार नहीं करते।

इसके बाद श्री गांधीने सभामें उपस्थित लोगोंसे पूछा कि ये बातें क्या आपको यह बता देनेके लिए काफी नहीं हैं कि हमारी सरकार एक निर्दय सरकार है और क्या आपके लिए ऐसी सरकार द्वारा नियन्त्रित स्कूलों और कालेजोंका बहिष्कार करना उचित नहीं है? स्वर्गीय लोकमान्य तिलकने आपको इसी मंचसे अनेक बार यह समझाया था कि हमारी सरकार कैसी दुष्ट है।

श्री गांधीने आगे कहा कि कुछ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि राष्ट्रीय कालेजों और स्कूलोंकी पर्याप्त व्यवस्था किये बिना छात्रोंसे सरकारी स्कूलों और कालेजोंको