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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/५१२

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

छोड़नेके लिए कहना भूल है। लेकिन मैं उन लोगोंसे पूछता हूँ कि जब कोई आदमी यह देख ले कि उसके बिस्तरके नीचे साँप है तब क्या वह उस बिस्तरको छोड़नेसे पहले दूसरे बिस्तरकी व्यवस्थाकी प्रतीक्षा करेगा? अतः छात्रोंको भविष्यके सम्बन्धमें व्यर्थ ही इतनी अधिक चिन्ता न करके स्कूल और कालेज छोड़ देने चाहिए। मेरी रायमें नौकरी पानेकी आशासे बी॰ ए॰ और एम॰ ए॰ पास करना भी हमारी वर्त- मान गुलामीके लिए बहुत अधिक उत्तरदायी है।

अन्तमें श्री गांधीने कहा कि वर्तमान विश्वविद्यालयों और कालेजोंसे विद्वान् कम और गुलाम अधिक उत्पन्न हुए हैं। अब हमें इन गुलाम पैदा करनेवाली संस्थाओंको नष्ट कर देना चाहिए और इसका एकमात्र उपाय सरकारसे असहयोग करना और उसकी संस्थाओंका बहिष्कार करना है। लेकिन मैं आपको फिर याद दिलाता हूँ कि हमारा असहयोग अहिंसात्मक होना चाहिए। यदि सब लोग अहिंसात्मक असहयोगी बन जायें तो आप एक सालमें ही स्वराज्य ले लेंगे।

श्री गांधीके बैठ जानेके बाद श्री निम्बकरने कहा कि श्री गांधीकी बातें सुननेके बाद मैं पूरी तरह मान गया हूँ कि जब श्रीमती बेसेंट एक्सेल्सियर थियेटरमें बोल रही थीं उस समय अध्यक्षका आदेश न मानकर मैंने भूल की थी और मैं उसके लिए हृदयसे पश्चात्ताप करता हूँ।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १५-११-१९२०
 

२६१. भाषण : गुजरात महाविद्यालयके उद्घाटनपर[]

अहमदाबाद
१५ नवम्बर, १९२०

भाइयो और बहनो,

अपनी जिन्दगीमें मैंने बहुतेरे काम किये हैं। उनमें से बहुतसे कामोंके लिए मैं अपने मनमें गर्व भी करता हूँ, कुछके लिए पछतावा भी होता है। इनमें से कई तो बड़ी जिम्मेदारी भी थे। पर फिलहाल जरा भी अतिशयोक्ति किये बिना मैं कहना

  1. गुजरात महाविद्यालय गुजरात विद्यापीठका अपना कालेज था। गुजरात विद्यापीठ सरकारके नियंत्रणसे मुक्त राष्ट्रीय शिक्षाके प्रसारके लिए राष्ट्रीय विश्वविद्यालयके रूपमें स्थापित किया गया था। गांधीजी उसके कुलपति थे। आगे चलकर अन्य अनेक शिक्षा-संस्थाएँ, कालेज और स्कूल विद्यापीठसे या तो सम्बद्ध हो गये या विद्यापीठ द्वारा उन्हें मान्यता दे दी गई। सन् १९२३ में ऐसी संस्थाओंमें पढ़नेवाले छात्रोंकी संख्या ३०,००० थी। १९३० और १९३२ के सविनय अवज्ञा आन्दोलन और सन् १९४२ के 'भारत छोड़ो' आन्दोलनके फलस्वरूप विद्यापीठकी प्रवृत्तियोंमें कुछ समयके लिए अस्थायी व्यवधान उपस्थित हुआ था। आजकल वह देशके राष्ट्रीय विश्वविद्यालयोंमें से एक है और शिक्षाके गांधीजीके आदर्शके अनुसार बुनियादी दस्तकारोपर आधारित जनसेवोपयोगी शिक्षाके प्रचारका कार्य कर रहा है।