पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/५१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८९
भाषण : अहमदाबादमें विद्यार्थियोंके समक्ष


आखिरमें मैं परमेश्वरसे प्रार्थना करता हूँ और उस प्रार्थनामें आप सबकी सम्मति चाहता हूँ। मेरी प्रार्थनामें आप सब साफ दिलसे शरीक हों:

हे ईश्वर, इस महाविद्यालयको ऐसा बनाइये कि इसके भीतर हम जिस आजादीका रात-दिन जप कर रहे हैं, वह आजादी मिले और उस आजादीसे अकेला हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि सारी दुनिया, जिसमें हिन्दुस्तान एक बूँदके बराबर है, सुखी हो।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १८-११-१९२०

 

२६२. भाषण : अहमदाबादमें विद्यार्थियोंके समक्ष

१५ नवम्बर, १९२०

अध्यक्ष महोदय, विद्यार्थिगण, भाइयो और बहनो,

हमें आचार्य महाराजने याद दिलाया है कि कांग्रेसने कलकत्तेमें लोगोंसे जो प्रतिज्ञा कराई है, उसका पालन करना चाहिए। इस प्रतिज्ञाके साथ मैं आपको एक और प्रतिज्ञाका स्मरण दिलाना चाहता हूँ। मेरे खयाल से यह कांग्रेस द्वारा की गई प्रतिज्ञासे अधिक महत्त्वकी है। मैं पिछले साल पंजाब गया था, जहाँ हम सबने एकमतसे हंटर कमेटीके बहिष्कारका निर्णय किया था। उस निश्चयपर पहुँचनेसे पहले हमने कई दिन चर्चामें बिताये थे। पण्डित मालवीयजीने बहुत-सी दलीलें दी थीं; हममें कितनी कचाई है, इसकी याद दिलाई थी; हम कितने आरम्भ-शूर हैं, इसका भी उस समय विचार हुआ था; नेताओंको जेलमें डाल दिया जायेगा, यह सब विचार हुआ था। इतने पर भी वहाँ आये हुए सभी लोगोंने——जिनमें पहला मैं, दूसरे पं॰ मालवीयजी, तीसरे पं॰ मोतीलालजी और चौथे मि॰ एण्ड्र्यूज और कुछ अन्य लोग भी थे—— मिलकर निश्चय किया कि हंटर कमेटीका बहिष्कार किया जाये। इस प्रतिज्ञाका स्मरण मैं आपको पहले कराता हूँ। मैंने उसी समय चेतावनी दी थी कि यह प्रतिज्ञा करेंगे तो आपको अपनी रिपोर्ट प्रकाशित करनी होगी और जाँच करने पर यदि सब जुल्म साबित हो जायेंगे तो न्याय प्राप्त करनेके लिए मरना भी पड़ेगा। इसके लिए यदि देशका बलिदान देना पड़े, तो हमें वह भी देना ही होगा। मेरी चेतावनीके बावजूद उस समय वह प्रतिज्ञा सबको प्यारी लगी थी। इस बातको मनमें रखना कांग्रेसकी प्रतिज्ञाको स्मरण रखनेसे भी अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि कांग्रेसकी प्रतिज्ञाके सम्बन्धमें तो ऐसा एक आरोप है कि उस वक्त लोगोंको विचार करनेका समय नहीं मिला था, उसे लोगोंने मेरी वाणीसे अभिभूत होकर यों ही स्वीकार कर लिया था। दूसरा आरोप यह है कि पहली ही बार बड़ी संख्यामें मुसलमान कांग्रेसमें गये थे और उनके संख्या-बलसे प्रस्तावको बहुमत मिल गया। असली बात यह हरगिज नहीं थी। असली बात यह थी कि प्रान्तवार मतगणना हुई थी और उसमें दो प्रान्तोंको छोड़कर बाकी सबने अधिक मतोंसे एक ही निर्णय किया था। फिर भी यह सच है कि उस प्रस्तावपर सभी आदमियोंने विचार न किया हो