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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और इसलिए उस प्रतिज्ञाको भले ही महत्त्व मत दीजिये। अलबत्ता जिसे कांग्रेसके प्रति आदर है, जिसके लिए कांग्रेसके प्रस्तावपर अमल करनेमें अन्तःकरणकी आवाज बाधक नहीं, उसे तो इस प्रतिज्ञाका भी निश्चयपूर्वक पालन करना ही चाहिए। परन्तु पंजाबकी प्रतिज्ञा तो जान-बूझकर की गई है। ठण्डे दिलसे, जिस समय आवेश जरा भी नहीं रह गया था उस समय, विचार करनेके बाद की गई है। संकटका पूरा भान था, तब की गई है। जिनके प्रति आपका आदर-भाव है, जो आपके नेता हैं, जिस पंजाबके लिए हम लड़ रहे हैं, उस पंजाबकी नाक रखनेके लिए उन्होंने यह निश्चय किया है। मुझे आपको वह प्रतिज्ञा याद दिलानी थी।

अब जो विद्यार्थी इस राष्ट्रीय विद्यालयमें भरती नहीं हुए हैं, उनसे मैं पूछता हूँ कि तुम क्या चाहते हो? तुम भारतके लिए स्वतन्त्रता——स्वराज्य चाहते हो? तुम अपनी निजी संस्कृति चाहते हो या पराधीनता? पराधीनताको सह लेनेको तैयार हो, तो तुमसे कहनेके लिए मेरे पास एक शब्द भी नहीं है। गुजरात कालेजमें तुम्हारे लिए बड़े-बड़े खेलके मैदान हैं, वहाँ खेल-कूद सकते हो। वहाँ तुम्हारे लिए बड़े-बड़े प्रोफेसर हैं। वहाँ जैसी लेबोरेटरी है, वैसी तुम्हें यह विद्यालय दे सके, इसमें काफी समय लगेगा। वैसी सुविधाएँ तुम्हें यहाँ नहीं मिलेंगी। परन्तु कैदीको सोनेकी और रत्नजटित बेड़ियाँ पहना देनेसे यदि उसका कैदीपन कम हो जाता हो, तो ही तुम गुजरात कालेजमें कैदी नहीं हो। परन्तु यदि तुम मानते हो कि जहाँ हमारी स्वतन्त्रता हो, वहीं हमारा तेज बना रह सकता है तो तुम गुजरात कालेजका, वहाँ कितनी ही सुविधाएँ मिलती हों, तो भी त्याग कर दो और अड़चनें उठाकर भी महाविद्यालयमें भरती हो जाओ। मैं तुम्हें उत्तेजित नहीं करना चाहता, परन्तु तुम्हारी बुद्धिको जाग्रत करना चाहता हूँ। तुम्हें अपने कर्त्तव्यका भान कराना चाहता हूँ, तुम्हारी अक्लका अपनी अक्लके साथ योग करा देना चाहता हूँ। फिर भी यदि तुम्हें यह लगता हो कि जबतक हम सरकारी स्कूल-कालेज में पढ़ रहे हैं, तबतक स्वतन्त्रताका विचार ही नहीं कर सकते, यदि यह विचार करनेमें तुम्हें बेवफाई लगती हो, तो तुम सरकारी स्कूल-कालेज भले ही न छोड़ो। जबतक सरकारसे शिक्षा पाते हैं, तबतक सरकारको अच्छा कहना चाहिए। परन्तु यह सरकार तो उद्धत बन गई है, उसने हमपर अत्याचार किये हैं, उसने लोगोंका तेज हर लिया है, उसने हमारे धर्मपर वार किया है, इतने पर भी क्या हम सरकारका भला चाह सकते हैं? तब भी क्या हम यह कह सकते हैं कि यह सल्तनत इतनी न्यायपरायण है कि उसमें सूर्य कभी नहीं छिपता? और यदि ऐसा नहीं चाह सकते, तो फिर सरकारसे दूर भागना चाहिए। प्रत्येक धर्म सिखाता है कि धर्मके प्रति बेवफाई-जैसा और कोई पाप नहीं है। इसीलिए मैंने लिखा है कि इस सरकारके विद्यालयोंमें शिक्षा पाना जिस डालीपर बैठे हों, उसीको काटनेके समान है। इसलिए जिन लड़कोंने अभीतक सरकारी स्कूल या कालेज नहीं छोड़ा है, उनसे मैं कहता हूँ कि तुम बार-बार अपने हृदयको टटोलो। तुम्हें लगे कि इस सरकारका अन्त करना ही चाहिए, तो हमारा सत्त्व, हमारी बहादुरी इसीमें है कि सरकारके स्कूल-कालेजोंसे तुरन्त निकल जायें।