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१६. पत्र : नरहरि परीखको

बम्बई
बृहस्पतिवार [८ जुलाई, १९२०][१]

भाईश्री नरहरि,[२]

मुझे अनभवसे यह विश्वास हो गया है कि विद्यार्थियोंकी लिखावटके सम्बन्धमें जितनी सावधानी बरती जाये उतनी कम है। सिर्फ आजीविकाका ही विचार किया जाये तो भी लिखावटकी कीमत बहुत ज्यादा है। विद्यार्थीका तो यह भूषण है।

हम बीमार क्यों पड़ते हैं? हर एकको इस बातकी खोज अपने लिए स्वयं कर लेनी चाहिए। इस सम्बन्धमें मैं सदा विचार करता रहता हूँ। सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्यकी दृष्टिसे विचार करते हुए मेरी वृत्ति फिलहाल हठयोगकी कुछ क्रियाओंकी ओर मुड़ी है। मुझे लगता है कि ये क्रियाएँ इस दृष्टि से बहुत महत्त्वकी हैं। इन विचारोंकी प्रेरणा तो मुझे बड़ौदाके एक वैद्यसे मिली। इसपर विनोबाके[३]साथ चर्चा करना। हम रोगी कायासे भारतकी पर्याप्त सेवा नहीं कर सकते। प्राणायाम और नेती-धौतिकी क्रियाएँ शरीरको स्वस्थ रखने में बहुत मदद करती होंगी, ऐसा मुझे मालूम देता है। इतना सब कहनेका मुख्य उद्देश्य तो यह है कि आप अपनी कायाको वज्रके समान बनाओ।

सवेरे उठनेके लिए अगर जरूरी जान पड़े तो आप शामको आठ बजते ही बिस्तरपर चले जायें। जल्दी उठनेकी कीमत मैं खूब पहचानता हूँ, इसीसे कहता हूँ।

दीपकके शरीरपर बहुत कम चरबी है। उसकी पसलियाँ दिखाई देती हैं। यह बात मुझे अच्छी नहीं लगती। एक भी लड़केकी पसलियाँ दिखाई दें, यह मैं सह ही नहीं सकता।

भास्करके पैसेके सम्बन्धमें अगर कुछ और जाँच-पड़ताल कर सको तो करना। इसमें तो शक नहीं कि हमें वह रकम उसके खातेमें जमा करनी चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं कि भास्करने स्वयं ही वह रकम ले ली हो?

विद्यार्थियोंके बारेमें काकाने[४]जो उत्तर दिया है, वह तो वही दे सकते थे। जिसे शालासे सच्चा प्यार हो, ऐसा उत्तर वही दे सकता है। मैं जवाबको परिपूर्ण मानता

  1. बृहस्पतिवार, ८ जुलाई, १९२० को गांधीजी बम्बईमें थे और वे एक दिनके लिए, जैसा कि अन्तिम अनुच्छेदमें कहा गया है, सोमवार, १२ जुलाईको अहमदाबाद गये थे।
  2. (१८९१-१९५७); १९१७ से साबरमती आश्रमके सदस्य; गांधीजीके रचनात्मक कार्यकर्ताओं में से एक।
  3. आचार्य विनोबा भावे (१८९५- ); गांधीजीके अनुयायी, ग्रामदान और भूदान आन्दोलनोंके प्रणेता।
  4. दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर (१८८५- ); काका साहबके नामसे प्रसिद्ध; शिक्षाविद्, लेखक और रचनात्मक कार्यकर्त्ता पद्म विभूषण। १९१५ से गांधीजीके सहयोगी।