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पत्र : नरहरि परीखको

हूँ लेकिन उससे आगे जायें तो मुझे विश्वास है कि मेरी शालासे निकला हुआ विद्यार्थी——अगर चाहे तो——अन्तमें अधिक कमा सकता है। उसकी बुद्धि परिपक्व और तीव्र होगी। उसका दिमाग विदेशी भाषा और परीक्षाके बोझ तले कुचला हुआ नहीं होगा। परीक्षा पास किये हुए व्यक्ति आज भी बहुत कमाते हैं, ऐसा मानना गलत है। आज भी हिन्दुस्तानके धनाढ्य पुरुष वे लोग हैं जिन्होंने कोई अंग्रेजी शिक्षा नहीं पाई है। अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोग उनके आश्रयमें उनके अधीन काम करते हैं। इसमें से बैरिस्टरों और डाक्टरोंकी बात मैं छोड़ देता हूँ, और उसमें भी बैरिस्टरोंकी, क्योंकि उन्हींको खिताबकी जरूरत रहती है। अगर चिकित्सा करना आ जाये तो हमारे बच्चे भी कर सकते हैं। सरकारी नौकरीके अलावा और सब नौकरियाँ (अगर नौकरी करना ही उनका ध्यय हो तो) बी॰ ए॰ पास लोगोंके समान हमारे बालक भी कर सकते हैं। और उतना अध्ययन करने के बाद अगर वे विलायत जाना चाहते हों तो वहाँ जाकर मैट्रिक्यूलेशन पास करके वे बैरिस्टर भी बन सकते हैं। मतलब यह कि हम उनके लिए पश्चात्तापका अवकाश भी रखते हैं। हमारी आशाके अनुरूप अगर हमें शिक्षा दी जाये तो हम सारे जगत्के विरुद्ध उसका बचाव कर सकते हैं।

मोक्षकी बातको छोड़ दें लेकिन 'अच्छे बनने' की महत्त्वाकांक्षा तो प्रत्येक बालकको समझाई जा सकती है। "अच्छा बनने" का तात्पर्य समझाते हए अनेक बातें सिखाई जा सकती हैं।

लेकिन ये सब बातें तो जब हम मिलेंगे तब होंगी। मैं सोमवारको वहाँ आऊँगा, उसी दिन वापस चला जाऊँगा। अपनी इस चर्चाके लिए अगर आप एक बजेसे एक घंटेका समय रखें तो ठीक होगा। उस समय वहाँ कोई नहीं आयेगा और अगर आया भी तो हम उससे माफी माँग लेंगे।

बापूके वन्देमातरम्

मूल गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ६४१५)की फोटो-नकलसे।