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भाषण : अहमदाबादमें विद्यार्थियोंके समक्ष

सभामें मैंने श्रीमती बेसेंटके इस अपमान [के अनौचित्य] पर जोर दिया था। जिस किसी विद्यार्थीने असहयोग करना अंगीकार किया हो, उसके हाथों शान्ति-भंग होना मैं नहीं चाहूँगा। असहयोग करनेवाले को उसकी तीन शर्तें स्वीकार करनी चाहिए। उनमें से पहली शर्त यह है कि तुम शान्तिको अपने हृदयमें लिखकर रखना : न तो तुम शान्ति-भंग करो, न किसीको गाली दो, न गुस्सा करो, न किसीके तमाचा मारो और न शर्म-शर्मकी आवाजें लगाओ। जबतक ऐसा किया जाता रहेगा तबतक आप इस आन्दोलनके योग्य नहीं बन सकेंगे। मैंने भाई निम्बकरसे कहा कि तुमने शान्ति-भंग की है। तुम्हें श्रीमती बेसेंट या भाई पुरुषोत्तमदास[१]या भाई सीतलवाडने[२]कितना ही आघात पहुँचाया हो, तो भी 'शेम-शेम' कहना तुम्हारा धर्म नहीं था। तुम्हारा धर्म तो यह था कि शान्त रहते अथवा शान्तिपूर्वक सभासे चले जाते। भाई निम्बकर मेरी बात समझ गये और उन्होंने भरी सभामें इसके लिए पश्चात्ताप किया और अपनी बहादुरी दिखा दी। जो अपनी भूल स्वीकार कर ले और उसके लिए पश्चात्ताप करे, वह सच्चा बहादुर है। ऐसा करके भाई निम्बकर आगे बढ़े हैं।

इसी प्रकार तुमसे——जो गुजरात कालेजमें जाते हैं तथा जो इस महाविद्यालय में भरती हो गये हैं——मैं चाहता हूँ कि तुम अपना धर्म न छोड़ो। असहयोगकी प्रतिज्ञाके तीन पद हैं। पहला पद है शान्ति। असहयोग शान्तिमय, तलवारके बिना होना चाहिए। जबान भी तलवार है, हाथ भी तलवार है और लोहेका धारवाला टुकड़ा भी तलवार है। दूसरा पद अनुशासन या संयम है और तीसरा यज्ञ है। हम शुद्ध हों, तभी यज्ञ या बलिदान कर सकते हैं। बलिदान दिये बिना कोई पवित्र—— शुद्ध नहीं बन सकता और विशुद्ध हुए बिना तुम अपनी पाठशाला न छोड़ना। यहाँ इस वक्त लगभग साठ विद्यार्थी हैं। इनमें से पांच ही विद्यार्थी हों, तो इतने से भी विद्यापीठ अपना कामकाज चलायेगा। उसकी जड़ पवित्र होगी तो उसपर स्वराज्यकी स्थापना होगी। जिसने अपनी शुद्धि नहीं की, वह इस पवित्र नींवकी विशुद्धतामें वृद्धि नहीं करेगा। परन्तु उसकी बदनामी करायेगा। इसलिए इस विद्यालयमें दाखिल होनेवाले विद्यार्थियोंसे मैं कहता हूँ कि यदि तुम असहयोगके इन तीनों पदोंका पालन करना न चाहते हो तो तुम इसे छोड़ दो।

इस सभामें आये हुए माता-पिताओंसे मैं कहता हूँ कि आप राष्ट्रीय परिषद्में उपस्थित थे। उसके प्रस्ताव आपने हाथ उठाकर पास किये हैं, आप कांग्रेसके भी माननेवाले हैं, आप अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह समझ लीजिये। आप अब अपने बच्चोंपर आघात मत कीजिये। आप हिन्दुस्तानपर आघात मत कीजिये, आपके लड़के-लड़कियाँ यज्ञ करना चाहें, तो उन्हें ऐसा करनेसे रोकिये नहीं बल्कि उन्हें आशीर्वाद दीजिये और इस राष्ट्रीय विद्यालयमें अपने आशीर्वाद सहित भेजिये। ऐसा नहीं करेंगे तो आप अपनेको लजायेंगे, गुजरातको लजायेंगे और यह साबित करेंगे कि गुजरात और इसलिए भारत कमजोर है।

  1. सर पुरुषोत्तमदास ठाकुरदास; अर्थ-शास्त्री और बम्बईके एक व्यवसायी तथा नरमदलीय नेता।
  2. सर चिमनलाल हरिलाल सीतलवाड; बम्बईके एक प्रमुख वकील; बम्बई विश्वविद्यालयके उप-कुलपति।