पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/५२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४९८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


सम्बद्ध प्रस्ताव हमारे अज्ञान और द्वेषके प्रति ही नहीं हमारी विवशताके प्रति भी सम्बोधित है। क्योंकि आगे इस आलेखमें यह कहा गया है:

यदि सब कुछ इनकी इच्छाओंके अनुसार हो गया तो भारत विदेशी हमलों और आन्तरिक अराजकताका शिकार बन जायेगा। टिकाऊ सरकारके लाभ, अबाध शान्ति, एक शताब्दीसे अधिक समयतक भारतकी व्यवस्थित प्रगतिसे प्राप्त लाभ तथा इन सबसे अधिक वे लाभ जिनके अब सुधार योजनाके अन्तर्गत होनेकी आशा है——इन सब चीजोंका अर्थात् भारतको भौतिक उन्नति, राजनैतिक प्रगतिका कुछ सिरफिरोंकी गैरजिम्मेदार सनकपर बलिदान कर दिया जायेगा।

मेरी नम्र रायमें वास्तवमें यह अंश सबसे अधिक शरारतपूर्ण, बहुत ही गुमराह करनेवाला है और यदि सरकारके शब्दोंमें कहें तो "सबसे अधिक अनैतिक है"। यदि प्रस्तुत तर्क में कुछ दम है तो भारतका ब्रिटिश संगीनके बिना सुरक्षाहीन दशामें रहना ही उचित है। मैं भारतके भविष्यकी इससे अधिक दुःखमय, अधिक अनैतिक और किसी भी राष्ट्रके इससे अधिक अयोग्य हो जानेकी कल्पना नहीं कर सकता। इस राष्ट्रके पास केवल एक शताब्दी पूर्व रूसको छोड़कर यूरोपके शेष तीन बड़े राष्ट्रोंसे अधिक बहादुर सैनिक थे। ब्रिटिश सरकारकी इससे तीव्र और क्या निन्दा हो सकती है कि उसने ब्रिटिश राष्ट्रके वाणिज्य लोभके लिए एक समूचे राष्ट्रको नपुंसक बना दिया? इस आलेखको तैयार करनेवाले यह अवश्य जानते होंगे कि हमारी इच्छाओंकी पूर्ण तुष्टिका अर्थ है एक ऐसा भारत जिसकी पूरी जनताका हृदय और उद्देश्य एक हो, जो स्वयं पूर्ण तथा आत्मनिर्भर हो और अपनी दैनिक आवश्यकताओंके लिए इतना उत्पादन कर ले कि संसारकी सभी नौसैनिक शक्तियोंके सम्मिलित अवरोधको भी अच्छी तरह बरदाश्त कर सके। यह सब दिवास्वप्न भी हो सकता है; परन्तु "हमारी आशाओंकी पूर्ण तुष्टि" का सही अर्थ यही है। यदि संसारके सारे राष्ट्र भी भारतमें, उसके किसी आक्रमणकी सजा देनेके लिए नहीं वरन् संगीतकी नोकपर उसके साथ व्यापार करनेके लिए, घुसें तो मैं चाहता हूँ कि सिख, गोरखा, पुरबिया, मुसलमान, राजपूत और भारतकी अन्य सभी सैनिक जातियाँ स्वेच्छासे अपने देश और सम्मानके लिए उनसे युद्ध करें और देवतागण भारतके उस युद्धका दृश्य देखें। यदि मुझसे कहा जाये कि भारतमें उद्देश्य और मनकी ऐसी एकता कभी नहीं होगी, तो फिर मैं यह कहूँगा कि भारतमें कभी स्वराज्य नहीं होगा और इसलिए सच्ची स्वतन्त्रता और सच्ची नैतिक तथा भौतिक प्रगति भी नहीं होगी। कैनिंगने लिखा था कि यदि भारतीय आकाशमें आदमीके अँगूठे-जितना एक बादल हो तो उसका किसी भी क्षण इतना बड़ा हो जाना सम्भव है कि यदि वह फट पड़े तो सारा देश बह जाये। किन्तु मैं अपने देशवासियोंकी योग्यताके प्रति अपने अटूट विश्वासके कारण ऐसी आशा करता हूँ कि ब्रिटिश शासनके सभी कटु अनुभव जो इस समय राष्ट्र- के अवचेतन मनमें दबे हैं किसी भी समय मूर्त रूप ले सकते हैं और फिर राष्ट्र एकता और आत्मबलिदानकी आवश्यकता इस तरह पहचान ले सकता है कि उससे