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ब्राह्मण और ब्राह्मणतर

ब्रिटिश सरकार पश्चात्तापके लिए विवश हो जाये और उसका सच्चा हृदय परिवर्तन हो जाये अथवा वह यहाँसे हट जानेको बाध्य हो जाये।

मैंने विद्यार्थी-जगत्‌को जो सलाह दी है, उसपर अनैतिकता आदिके आरोप लगाये गये हैं; मैं उनका खंडन करके इस लेखको नहीं बढ़ाना चाहता। इस पत्रिकाके पृष्ठोंमें पाठकोंके समक्ष इस प्रश्नपर अपनाई गई मूल स्थितिका धार्मिक विवेचन स्पष्टतः कर दिया गया है। मैं इस लम्बे लेखको केवल एक चीजके अभावकी ओर इशारा करके समाप्त करूँगा। यदि खिलाफतकी शर्तोंमें यहाँसे-वहाँतक संशोधन और लोगोंको पंजाबके बारेमें पूरी तरह सन्तुष्ट कर दिया जाये तो असहयोगकी अवश्यम्भावी प्रगति रोकी जा सकती है। यदि इन दोनों मुद्दोंपर ब्रिटिश राष्ट्र भारतकी इच्छाओंका सम्मान करे तो असहयोगके स्थानपर सहयोग होने लगेगा और उसकी सबसे स्वाभाविक परिणति साम्राज्यके अन्तर्गत स्वराज्य होगी।

परन्तु जहाँतक मैं राष्ट्रके मनको जानता हूँ, मेरी समझमें जबतक पश्चात्तापकी यह भावना उत्पन्न नहीं होगी तबतक सरकारके अपनाये सभी प्रस्तावों और दमनके तरीकोंके बावजूद अहिंसात्मक असहयोग इस देशका धर्म बना रहेगा और अवश्य रहना चाहिए। देश कुचक्र, धोखाधड़ी और मीठे शब्दोंसे ऊब उठा है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १७-११-१९२०

 

२६६. ब्राह्मण और ब्राह्मणेतर

जब मैंने 'यंग इंडिया'में महाराष्ट्रके ब्राह्मणेतर प्रश्नपर लिखा उस समय मुझे कुछ ऐसा लगा था कि ब्राह्मणेतर मामला, पूरी तरह नहीं तो बहुत हदतक, एक राजनैतिक मामला है और ब्राह्मणेतरोंकी ब्राह्मणोंसे वर्गके रूपमें उतनी शिकायत नहीं है जितनी कि कुछ शिक्षित ब्राह्मणेतरोंको उन राष्ट्रवादियोंसे है जो ज्यादातर ब्राह्मण हैं। ब्राह्मणेतरोंमें लिंगायत, मराठा, जैन और 'अछूत' हैं। फिर 'अछूतों' को भी अन्य ब्राह्मणेतरोंसे शिकायत है और इस कारण वे ब्राह्मणेतरोंसे भी उतने ही दूर हैं जितने कि ब्राह्मणोंसे। शिक्षित ब्राह्मणेतरोंकी शिकायत सबकी शिकायत नहीं है। परिस्थितिको निम्नलिखित शब्दोंमें व्यक्त किया जा सकता है:

१. शिक्षित ब्राह्मणेतरोंको वहीं राजनैतिक शक्ति प्राप्त नहीं है जो ब्राह्मणोंको प्राप्त है। सरकारी और प्रतिनिधि संस्थाओंमें शिक्षित ब्राह्मणोंको ही सबसे अधिक पद प्राप्त हैं, हालाँकि शिक्षित-ब्राह्मणेतरोंकी संख्या शिक्षित ब्राह्मणोंसे अधिक है।

२. कुछ ब्राह्मण लिंगायतोंके मन्दिरके गर्भगृहमें जानेका निषेध करते हैं; और लिंगायत उसपर अपना अधिकार बताते हैं; और (कुछ ब्राह्मणोंकी दृष्टिमें) इस झूठे दावेका अन्य ब्राह्मणों द्वारा समर्थन किया जाता है।

३. ब्राह्मण सभी ब्राह्मणेतरोंके साथ शूद्रों-जैसा व्यवहार करते हैं और यह बरताव ठीक वैसा ही है जैसा अंग्रेजोंका भारतीयोंके साथ।