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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय



मेरी राय में ब्राह्मणेतरोंकी शिकायत बहुत ही कमजोर है और यदि राष्ट्रवादी दलके ब्राह्मण कांग्रेसकी असहयोग योजनाको पूरी तरहसे अमल में लायें तो महाराष्ट्रके सार्वजनिक जीवनमें इस शिकायतका कोई आधार ही न रहे।

आन्दोलनकी शक्तिका कारण धार्मिक या सामाजिक निर्योग्यता नहीं, वरन् ब्राह्मणोंका अरसेसे चला आनेवाला राजनैतिक प्रभुत्व है जिसपर योग्यताके आधारपर निःसन्देह उनका हक है। यदि राष्ट्रवादी ब्राह्मण, जिनके विचार स्वराज्यके बारेमें उदार बन गये हैं, सभी सरकारी पदोंको त्याग दें और कौंसिलोंका तथा नगरपालिकाओंकी नामजद सीटोंका बहिष्कार कर दें तो ब्राह्मणेतरोंकी यह शिकायत अवश्य खत्म हो जायेगी। मुझे साफ नजर आ रहा है कि सरकार अपनी मुस्तकिल नीति के मुताबिक ब्राह्मणेतरोंको कांग्रेसमें रखकर उनका इस्तेमाल ब्राह्मणोंके विरुद्ध करेगी और दोनोंमें झगड़ा पैदा करके और ब्राह्मणेतरोंको राजनैतिक प्रलोभन देकर ब्राह्मण-विरोधी आन्दोलन यथासम्भव बन्द नहीं होने देगी।

यह भी साफ है कि ब्राह्मण यदि सरकारसे मिलनेवाला सभी प्रकारका आश्रय छोड़ दें तो ब्राह्मणेतरोंके प्रचारकी कमर टूट जायेगी और उनके विरोधका तीखापन खत्म हो जायेगा। ब्राह्मणेतर नेता मतदाताओंको अपने पक्षमें करनेका प्रयत्न कर रहे हैं और चुनाव करनेवालों को बता रहे हैं कि ब्राह्मणेतर कमजोर हैं अतः उन्हें अंग्रेजोंकी मदद अवश्य लेनी चाहिए। प्रश्नने इसीलिए अधिक गम्भीर रूप धारण कर लिया है। ब्राह्मण नेता भी स्वभावतः उन्हीं मतदाताओंके पास जा-जाकर उन्हें प्रभावित करने और अपना मत प्रयोग करनेसे विरत करनेकी कोशिश कर रहे हैं। इससे परस्पर दुर्भाव पैदा होता है। परन्तु यह दुर्भाव उस दुर्भावसे कम है जो नरम दलीय और राष्ट्रवादी लोगोंके झगड़ने से पैदा होता है। स्थितिका सबसे दर्दनाक पहलू यह है कि यदि ब्राह्मणेतर नेता, जो जनताका प्रतिनिधित्व करने और उसके लिए चिन्ता करनेका दावा करते हैं, सरकारको अपना सहयोग देंगे या सरकारी मददसे अपनी दशा बेहतर बनानेकी कोशिश करेंगे तो इससे वास्तवमें जनतापर सरकारका प्रभुत्व और मजबूत होगा तथा सरकारी संरक्षणको बढ़ावा मिलेगा और पंजाब तथा खिलाफतकी गलतियोंका निराकरण और भी कठिन हो जायेगा। इस प्रकार ब्राह्मणेतर नीति स्पष्ट ही एक आत्मघाती नीति है। ब्राह्मणों या राष्ट्रवादियोंकी चाहे जो शिकायतें हों, निश्चय ही ऐसी सरकारसे गठबंधन द्वारा उनका इलाज नहीं हो सकता, जिसका धर्मं जनताका आर्थिक शोषण करते हुए उसे दुर्बल बनाना है। पंजाब और कुछ हदतक खिलाफत सम्बन्धी अन्यायको दूर करनेसे इनकार करना हर कीमत पर अंग्रेजोंकी प्रतिष्ठा बनाये रखनेकी नीतिपर आधारित है। एक लाख अंग्रेज तीस करोड़ इनसानोंको पशुबलसे तो अपने अधीन कदापि नहीं रख सकते।

परन्तु उन्हें उत्तरोत्तर अत्यन्त सूक्ष्म ढंगसे लाचार बनाकर वह अपनी शक्ति बढ़ा सकती है और बढ़ाती है। इसलिए मैं ब्राह्मणेतर नेताओंको सरकारको सहयोग देनेके खतरोंके विरुद्ध चेतावनी देना चाहता हूँ कि उससे उसी उद्देश्यमें बाधा पड़ेगी