१७. सन्देश : राजकीय मंडलकी बैठकको
[९ जुलाई, १९२० के पूर्व][१]
श्री [इंदुलाल] याज्ञिकने[२]एक गुजराती पत्र पढ़ा जिसे बैठकमें पढ़नेके लिए श्री मो॰ क॰ गांधीने उन्हें लिखा था। पत्र इस प्रकार है:
राजकीय मण्डलकी बैठक नडियादमें हो रही है। 'नवजीवन' [के पिछले अंक] में मैंने जिस प्रस्तावका[३] सुझाव रखा है; कृपया उसे देखिये। मैं चाहता है कि मंडल निडरतापूर्वक पंजाब और खिलाफत दोनों सवालोंके सिलसिलेमें असहयोगकी सलाह देते हुए एक प्रस्ताव पास करे। कौंसिलोंके बहिष्कारको मैं उस दिशामें पहला कदम मानता हूँ। मेरी समझम कौंसिलोंमें प्रवेश करने के बाद बहिष्कार अपनाना मात्र कायरता है। जो लोग पंजाबके प्रति न्याय नहीं करते और जो खिलाफतके सवालपर हमें धोखा देते हैं, उनसे हम सह्योग कैसे कर सकते है? मुझे याद है कि बचपनमें मैंने जुआ खेलनेवालों को बेईमानीसे अपने पासे डालनेवालों के साथ खेलने से इनकार करते देखा है। हमारे सामने जो राजनैतिक खेल है, उसमें भारतकी प्रतिष्ठा दाँवपर लगी है। एक ओर खिलाड़ी दुर्योधन-जैसे जान पड़ रहे हैं। उनके साथ कैसे खेला जाये? एक सही और साहसपूर्ण निर्णय लेने में ईश्वर आपकी मदद करे।
बॉम्बे क्रॉनिकल, १६-७-१९२०