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सत्याग्रह और दलित जातियाँ

मेरी तरफसे इस सम्बन्धमें ये मेरे अन्तिम शब्द हैं।

एच॰ पी॰ डगलस

मुझे कहनेकी जरूरत नहीं कि श्री डगलस लक्ष्यसे दूर भटक गये हैं। वे 'अपने' असहयोग आन्दोलनमें एक या किसी भी मुसलमानका साथ भले ही न दें; परन्तु क्या वे एक अन्यायी सरकारसे इसलिए सहयोग कर सकते हैं कि उनका सहयोगी भी उनकी समझमें उतना ही अन्यायी है? जहाँतक मौलाना शौकत अलीका सम्बन्ध है, मैं उनसे अपनी स्थिति बयान करनेको कह रहा हूँ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १७-११-१९२०

 

२७०. सत्याग्रह और दलित जातियाँ

४ नवम्बर, १९२०

सेवामें
सम्पादक
'यंग इंडिया'
महोदय,

२७ अक्तूबरके अपने सम्पादकीय लेखमें[१]मेरे पत्रपर टिप्पणी करते हुए वस्तुतः आपने मेरा मुख्य अभिप्राय स्वीकार कर लिया है। उसे आपकी ही सशक्त भाषामें कहूँ कि "हम अंग्रेजोंसे अपने खूनसे रँगे हाथ धोनेको कहें उससे पहले हम हिन्दुओंका यह कर्त्तव्य है कि हम अपने दामनके दाग मिटा लें।" परन्तु क्या आप वास्तवमें अंग्रेजोंसे ऐसा कह नहीं रहे हैं? आप मानते हैं कि मेरा "प्रश्न ठीक और समयोचित है" तो फिर आपने जो राजनैतिक आन्दोलन आजकल शुरू कर रखा है, क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि वह कुछ नहीं तो समयसे कुछ पहले शुरू कर दिया गया है। आप यह भी कहते हैं कि "आज जो इस साम्राज्यमें हमारी स्थिति अछूतों जैसी हो गई है" वह गोखलेके शब्दोंमें "न्यायप्रिय ईश्वर द्वारा किया गया प्रतिशोधात्मक न्याय है।" यदि ऐसा ही है तो क्या इसका यह अर्थ नहीं निकलता कि हम कदापि अपने राजनैतिक उद्देश्य तबतक प्राप्त नहीं कर सकते जबतक उस प्रतिशोधात्मक न्यायके मूल कारण या कारणोंको हम दूर नहीं कर लेते, और (भगवान् बचाये) यदि हमारा वर्तमान आन्दोलन सफल भी हो जाता है, अंग्रेज हटा दिये जाते हैं
  1. देखिए "दलित" जातियाँ।