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सत्याग्रह और दलित जातियाँ
की उन्नतिके लिए काम करनेका निर्णय करें तो आपके रास्तेमें सरकार रुकावट बनेगी। वह तो हमारी ही तरह आपको इसके लिए धन्यवाद देगी। क्या यह आशा करना बहुत अधिक है कि आप अब भी अपने "निर्णयकी भूल" देखेंगे और समाजकी बेहतरीके कामपर ध्यान देंगे जो आपके पुराने भाषणोंके अनुसार भारतके लिए स्वराज्य पानेका सबसे निश्चित और सबसे अच्छा रास्ता है?

आपका सच्चा,
एस॰ एम॰ माइकेल

मैं इस उत्तरको सहर्ष प्रकाशित करता हूँ। जाहिर है कि श्री माइकेल 'यंग इंडिया' के नियमित और सावधान पाठक नहीं हैं। यदि वे होते तो उन्हें विदित होना चाहिए था कि असहयोग शुद्धीकरणकी प्रक्रिया है। वे देखेंगे कि जब असहयोगके तरीकेसे स्वराज्य स्थापित हो जायेगा, तो कोई भी 'पेरिया' या ब्राह्मणेतर समस्या सुलझानेको बाकी नहीं रह जायेगी। मैं अपने उस वक्तव्यपर कायम हूँ कि समाजकी बुनियादी बुराइयोंका सुधार करना स्वराज्य पाना है, परन्तु उस समय मैं यह नहीं देख पाया था कि ब्रिटिश सरकार सबसे बड़ी सामाजिक बुराई है जिससे समाज अभिशप्त है। इसलिए इस सरकारको, यदि वह पश्चात्ताप नहीं करती तो, अवश्य समाप्त होना चाहिए, वैसे ही जैसे कि हिन्दू धर्मको यदि वह छुआछूत के दोषसे मुक्त नहीं होता। श्री माइकेलसे मेरा मतभेद उसी तरहका है जैसा उन हिन्दुओंसे है जो छुआछूतके शैतानी स्वरूपको नहीं देखते। श्री माइकेल सरकारकी वर्तमान प्रणालीमें अपने राष्ट्रकी उत्तरोत्तर अवनति नहीं देख पा रहे हैं। इसलिए उनके लिए ब्रिटिश सरकारको सहन करना सही हो सकता है। मेरे लिए वैसा करना वर्तमान स्थितिमें पापपूर्ण है। और अब मैं उसी उपायको सरकारकी वर्तमान प्रणालीके विरुद्ध प्रयोग करनेमें लगा हुआ हूँ जो मैंने हिन्दू धर्म में छुआछूतकी प्रथाके विरुद्ध प्रयुक्त किया है। अफगान आक्रमणकी बात करके श्री माइकेल विषयसे भटक गये हैं। इस नई आपत्तिका जवाब न देनेके लिए वे मुझे क्षमा करेंगे। मैं उनका ध्यान इस पत्रके पृष्ठोंकी ओर दिलाता हूँ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १७-११-१९२०