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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अतएव गुजरातियोंका इस दिशामें विशेष कर्त्तव्य हो जाता है। मैं अनेक गुजरातियोंके निकट सम्पर्कमें आया हूँ, उनके साथ मैंने मुक्तभावसे अपने विचारोंकी चर्चा की है। वे बहत बारीकीसे मेरे जीवनका अध्ययन कर सकते हैं। मैं अपनी कमजोरियोंको उनसे छिपा नहीं सकता——छिपानेका प्रयत्न भी नहीं करता।

मेरा दावा है कि मैं आज जिन विचारोंको जनताके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ वे अपरिपक्व बुद्धिकी उपज नहीं है, अपितु तीस वर्षके जाग्रत अनुभवोंकी निहाईपर गढ़े गये हैं, इसलिए वे अत्यन्त प्रौढ़ विचार हैं। तथापि उनमें दोष हो सकते हैं, वे गलत भी हो सकते हैं। बहुत-सी भूलें परम्परासे चली आती हैं। [ऐसा] अनुभव होने के बावजूद हम उन्हें भूलके रूपमें पहचाननेमें असमर्थ रहते हैं। यह सम्भव है कि अपनी जड़ताके कारण मैं अपने विचारोंके दोषोंको न देख पाता होऊँ।

इसलिये मैं तो सिर्फ इतना ही चाहता हूँ कि आप मेरे विचारोंको बिना आजमाए ही फेंक न दें। उनकी जाँच करना गुजरातियोंका विशेष कर्त्तव्य है, क्योंकि मेरे सामीप्यके कारण गुजरातको उनको परखनेकी अधिक सुविधा है।

"आपने तो संसार छोड़ दिया है, साधु हो गये हैं, विचार अच्छे तो हैं लेकिन सांसारिक मनुष्य उनपर अमल नहीं कर सकते"; ऐसा कहकर उन्हें निकाल बाहर करना कायरताका सूचक है। अपने ऊपर साधुता अथवा असांसारिकताके आरोपको में स्वीकार नहीं करता। अपने साथियोंकी ओर दृष्टिपात करनेसे मैं अपनी अपूर्णताको देख सकता हूँ। मैं अपनेको सांसारिक व्यक्ति मानता हूँ। मुझे तो लगता है कि मैं व्यवहार-कुशल व्यक्ति हूँ, अपने पड़ोसियोंकी अपेक्षा अधिक सुखी, सन्तोषी तथा निर्भय हूँ। तथापि मैं दूसरोंकी बनिस्बत कम चिन्ताओंसे घिरा हुआ मनुष्य नहीं हूँ। मेरी कठिनाइयोंको देखकर मेरे पड़ोसी तो काँप जाते हैं। तथापि मैं भी काम चलाने योग्य स्वस्थ अवश्य रहता हूँ। अन्य लोगोंकी भाँति मेरे भी स्त्री-पुत्रादि हैं। उनके प्रति अपने उत्तरदायित्वोंको मैंने उतार नहीं फेंका है, वरन् उनका सूक्ष्मतासे अध्ययन किया है। और उनमें से किसीके भी उत्तरदायित्वसे विमुख नहीं हआ हूँ। मैं जंगलमें नहीं रहता बल्कि अपने सम्बन्धोंके घेरेको बढ़ाता जाता हूँ। अन्य लोग मेरी अपेक्षा संसारमें अधिक लिप्त हो सकते हैं, ऐसी तो मुझे कोई बात दिखाई नहीं पड़ती। आप मुझे साधु कहकर एक ओर कर दें तो यह मेरे प्रति अन्याय करने तथा गुजरातको मेरी सेवाओंसे वंचित करने के समान है।

वर्तमान सरकारकी अनीति, अन्याय तथा उद्धतता अवर्णनीय है। वह एक झुठको दूसरे झूठके बलपर खींचती चली जाती है। अनेक कार्योको डरा-धमकाकर अन्जाम देती रहती है। यदि लोग इस सबको चुपचाप सहन करते रहेंगे तो हम कभी आगे नहीं बढ़ सकेंगे।

यदि कोई भूखा व्यक्ति अपनी भूखके बारेमें नारे लगाता रहे, लेकिन अन्न प्राप्त करनेके लिए कोई बड़ा प्रयत्न न करे, प्रयत्न करते हुए ही मरनेके लिए तैयार न हो तो हमें इसी बातकी शंका होने लगेगी कि वह सचमुच भूखा भी है या नहीं।

'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने टीका करते हुए कुछ दिन पहले लिखा था कि हमारे वक्तागण पंजाब आदिके सम्बन्धमें जितने विशेषणोंका प्रयोग कर रहे हैं, वे सब यदि