पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आइये, अब हम इस बातपर विचार करें कि विधान परिषदोंका परित्याग किस तरह किया जाना चाहिए। विधान परिषदोंका त्याग अर्थात् चुपचाप बैठे रहना नहीं है बल्कि मतदाताओंको उस दिशा में शिक्षित करना और सरकारपर अपने मन्तव्यको स्पष्ट रूप से प्रकट करना है।

अतः प्रत्येक मुख्य शहरमें हमें विधान परिषदोंका बहिष्कार करनेके प्रस्ताव पास करने चाहिए।

खिलाफत के प्रश्नपर मुसलमानोंके साथ अन्याय करने, ब्रिटिश मन्त्रिमण्डल द्वारा प्रधान मन्त्रीके वचन-भंगपर अपनी मोहर लगाने तथा पंजाब में भयंकर और असह्य अन्याय किये जानेसे प्रजाके मनको इतनी ज्यादा ठेस पहुँची है कि जबतक इनके सम्बन्धमें न्याय नहीं मिल जाता तबतक विधान परिषदोंमें दाखिल होकर सरकारको शासन चलाने में मदद करना जनताका अपमान करना है। इसलिए इस सभाकी राय है कि किसी भी व्यक्तिको विधान परिषदोंके उम्मीदवार-पदके लिए खड़ा नहीं होना चाहिए और यदि कोई खड़ा हो भी जाये तो मतदाताओंको चाहिए कि वे उसे अपने मत न दें। इतना ही नहीं, सरकारको यह भी लिख भेंजे कि वे किसी भी व्यक्तिको विधान परिषदोंका सदस्य बनाकर नहीं भेजना चाहते।

प्रत्येक स्थानपर जल्दी से जल्दी इस आशय के प्रस्ताव तत्क्षण पास करवाये जाने चाहिए।

हमें कांग्रेसकी बैठककी राह देखनेकी आवश्यकता नहीं। कांग्रेस जनमतको अभिव्यक्त करनेका माध्यम ही अधिक है, जनमतको प्रशिक्षित करनेका साधन अपेक्षाकृत कम ही है। जिन्हें सही मार्गकी प्रतीति हो गई है उन्हें कांग्रेसके लिए रुके रहनेकी तनिक भी जरूरत नहीं है; बल्कि उन्हें तो अपने निश्चयपर अमल करते हुए कांग्रेसको जनमतकी दिशा और उसके वेगसे परिचित करवाना चाहिए।

इस महत्कार्य में सब एकाएक एकमत हो जायें, ऐसा कठिन है। हमें धैर्यपूर्वक विरोधी मत रखनेवाले व्यक्तियोंको शिक्षित करना पड़ेगा। उनके प्रति अरुचि प्रकट करके, उनका बहिष्कार करके हम उनका मत परिवर्तन तो नहीं कर सकते, उन्हें दलीलोंसे विनयपूर्वक समझा-बुझाकर ही अपनी ओर करना होगा। ऐसा करके ही हम सही अर्थोंमें जनमतको प्रशिक्षित कर सकेंगे।

[गुजराती से]
'नवजीवन, ११-७-१९२०