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२०. युवराजका आगमन

श्री बैप्टिस्टाने इस प्रश्नको [बॉम्बे] 'क्रॉनिकल' में उठाया है कि यदि सम्राट् जॉर्ज पंचमके सबसे बड़े राजकुमार भारत आयें तो आज हम जिस दुःखजनक स्थितिमें है उस स्थितिमें हम उनका हार्दिक स्वागत कर सकते हैं अथवा नहीं। उसमें मेरे विचारोंके सम्बन्धमें भी उन्होंने बहुत-कुछ लिखा है। इसलिए मेरा यह कर्त्तव्य हो गया है कि इस सम्बन्धमें मैं भी कुछ कहूँ।

मेरी मान्यता है कि युवराज अथवा शाही परिवारको राजनैतिक क्षेत्रमें नहीं घसीटा जा सकता। सरकारके साथ सामान्य मतभेद हो तो युवराजके आनेपर उनका स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन जब प्रजा शोकग्रस्त हो, जब जनता अत्यन्त पीड़ित हो तब युवराजका आना शोभा नहीं देता। यदि अधिकारीगण जनताकी मनोस्थितिको जाने बिना युवराजको यहाँ भेजते हैं तो प्रजा इस कदमके प्रति अपनी नापसन्दगी जाहिर करनेका अधिकार रखती है। उससे युवराजका कोई अपमान नहीं होता, इस बारेमें अपनी असहमति प्रकट करना ब्रिटिश संविधानके प्रति अपने अज्ञानको व्यक्त करना है।

स्मरण रखना चाहिए कि युवराज अपनी इच्छासे नहीं आते-जाते। वह तो संविधानके विरुद्ध माना जायेगा। ब्रिटिश मन्त्रिमण्डल यहाँकी सरकारसे परामर्श करनेके बाद उन्हें भेजे तभी वे आ सकते हैं। युवराज स्वेच्छासे किसी भी भारतीयसे भेंट नहीं कर सकते और न वे अपनी इच्छानुसार कोई भाषण ही दे सकते हैं। इसलिए युवराजका आगमन, उनका नहीं सरकारका कार्य माना जायेगा।

इसके अतिरिक्त सरकार युवराजको हिन्दुस्तानमें स्वार्थवश ही बुला रही है। यदि सरकार और जनताके बीच कोई भारी मतभेद न हो तो दोनोंका एक ही स्वार्थ समझा जायेगा। लेकिन जहाँ भारी मतभेद हो वहाँ सरकारका स्वार्थ-साधन और जनताका नुकसान कहलायेगा। ऐसी परिस्थितियोंमें युवराज आयें और उनका हम स्वागत करें तो सरकार यह समझेगी कि वह तो ऐसे ही काम करती है जिससे जनताके मनको चोट न पहुँचे, जनताके दुःखी होनेकी बात कुछ असन्तोषशील व्यक्ति ही कर रहे हैं। उसका ऐसा अर्थ करना आश्चर्यकी बात नहीं होगी।

इसलिए सरकार यदि ऐसे समय युवराजको यहाँ बुलाती है तो मैं उसे एक जाल ही मानूँगा।

जनताकी आज क्या हालत है? खिलाफतके प्रश्नपर मन्त्रिमण्डलने जनताके एक भागको जो वचन दिया था, उसे उसने तोड़ दिया है और इस वचन-भंगपर भारत सरकारने मोहर लगा दी है। मुसलमानोंकी धार्मिक भावनाओंकी कोई परवाह नहीं की गई। पंजाबमें जनतापर अधिकारियोंने जबरदस्त अत्याचार किया। उसका उसे कोई पश्चात्ताप नहीं है, इतना ही नहीं, उनकी कार्रवाइयोंको उसने अत्यन्त उद्धततापूर्वक

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