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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ठीक बताया है। अत्याचारियोंमें अनेक लोग अपने-अपने पदोंपर बने हुए हैं और उनका अत्याचार आज भी बदस्तूर चल रहा है। ऐसी स्थितिमें यदि हम युवराजका स्वागत करके सरकारकी सत्ताको और भी दृढ़ करें तो वह अपने हाथों अपने पैर कुल्हाड़ी मारनेके समान होगा।

युवराजका स्वागत न करनेका अर्थ सरकारके दुष्कृत्योंके प्रति कड़ा विरोध प्रकट करना है। हमें इसका अधिकार है। दुष्कृत्योंका विरोध न करना अपनेको कायरोंकी स्थिति में डालने जैसा है। तब हमारे आवेदन-पत्र तथा शिकायतें सभी कुछ झूठे माने जायेंगे।

यदि सरकार युवराजके आगमनके समय जनतामें उत्साह, उमंग तथा मानकी भावनाओंको उमड़ते देखना चाहती हो तो सरकारका कर्त्तव्य है कि वह जनताको सन्तुष्ट करे। जनताको सन्तुष्ट करने का एक ही मार्ग है——खिलाफतका न्यायपूर्ण निर्णय तथा पंजाबके सम्बन्धमें पूर्ण न्याय। इन दोनोंके कारण जनता और सरकारके बीच दरार पड़ गई है, और इनके कारण जनता शोकसागरमें निमग्न है। इससे जबतक जनताका समाधान नहीं होता तबतक जनताको खुले शब्दोंमें जता देना चाहिए कि वह युवराजके स्वागत सम्बन्धी समारोहोंमें भाग लेनेमें असमर्थ है।

[गुजरातीसे]
'नवजीवन, ११-७-१९२०

२१. शुद्ध स्वदेशी

इस समय पंजाबमें जो हलचल हो रही है उसके सम्बन्धमें गत सप्ताहके 'नवजीवन' में श्रीमती सरलादेवीने कुछ खबर दी थी। इसके उपरान्त उन्होंने तार द्वारा सूचित किया है कि झेलममें जो खिलाफत सम्मेलन हुआ वहाँ उन्होंने स्वदेशीपर भाषण दिया था। मुसलमान स्वदेशी व्रत ग्रहण करने लगे हैं, इसलिए अब सहज ही खिलाफतके मंचसे स्वदेशीकी बात की जा सकती है।

इस प्रसंगमें स्वदेशीके कुछ-एक मूल तत्त्वोंको समझ लेना अत्यन्त आवश्यक है। लाखों मुसलमान स्वदेशी-व्रत ले लें तो क्या इससे स्वदेशी आन्दोलनकी वृद्धि हो सकती है? मुझे लगता है कि या तो उनकी आवश्यकताका पर्याप्त नया माल तैयार हो, अथवा व्रत लेनेवाले मुसलमान तथा अन्य लोग अपने कपड़ेकी आवश्यकताओंको कम करें तभी यह सम्भव हो सकता है।

हमारी मिलोंमें जो माल तैयार होता है वह हिन्दुस्तान के लिए पर्याप्त नहीं है। मिलें तुरन्त अधिक कपड़ा तैयार कर सकनेकी स्थितिमें भी नहीं हैं। फिर उनके बुननेकी क्षमता कातनेकी क्षमता से कहीं अधिक है। इसलिए यदि हम मिलके सूतसे हाथ-करघोंपर बुनें तो उस हदतक मिलोंमें बुना जानेवाला कपड़ा कम हो जायेगा और कपड़ेका परिमाण नहीं बढ़ेगा; बहुत हुआ तो बाहरसे कपड़ा अधिक आनेकी