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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/६३

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शान्तिनिकेतन


इसी तरह यदि हम कविश्रीके उद्देश्यको समादृत करते हों, राष्ट्रीय शिक्षाको राष्ट्रके ही हाथोंमें रखनेके प्रयोगको पसन्द करते हों, कविश्रीकी कलाका कुछ अंश हमारे बालकोंको भी मिले यदि ऐसा चाहते हों तो हमें उस संस्थाको चलानेमें मदद करनी चाहिए। कविश्रीने स्वयं ही कहा है कि शान्तिनिकेतन उनका विनोद है। वे अपने विनोदकी खातिर ही बालकोंको इकट्ठा करते हैं। उस वातावरणमें उनका अधिकसेअधिक विकास होता है। शान्तिनिकेतन उनके पिताश्री महर्षि देवेन्द्रनाथकी कृति है। हम कविश्रीकी पूजा करें और उनकी संस्थाकी मदद न करें, ये तो परस्पर विरोधी बातें हैं।

गुजरातियोंको मैं इस संस्थाका थोड़ा-बहुत भार उठा लेनेकी सलाह देता हूँ, क्योंकि कविश्रीको हमने अपने सम्मानित अतिथिके रूपमें निमन्त्रित किया था। हमारे निमन्त्रणको स्वीकार करने में उनका उद्देश्य यह भी था कि हम उनकी संस्थाको मान्यता प्रदान करेंगे और उसकी मदद करेंगे। जहाँ-जहाँ भावसहित उन्हें भेंटें समर्पित की गई वहाँ-वहाँ उन्होंने उन्हें सहर्ष स्वीकार किया। उनका काठियावाड़का प्रवास निरर्थक ही गया, ऐसा कहा जा सकता है। भावनगरमें किसीने कुछ नहीं किया, बड़ौदामें भी ऐसा ही हुआ। अहमदाबादने जो-कुछ किया वह उसकी क्षमताके प्रमाणमें थोड़ा ही माना जायेगा। मुझे उम्मीद है कि हम आज भी इस दोषको सुधारकर अपनी सत्कारभावनाको पूर्णता प्रदान करेंगे।

माँगरोलके[]श्री तुलसीदास कराणीके यहाँ विवाहोत्सव था, उन्होंने उस अवसरका लाभ उठाकर थोड़े ही दिन पहले १,००१ रुपये भेजे थे। उनकी प्राप्ति स्वीकार करते श्री एन्ड्र्यूजने बताया कि अभी बहुत अधिक मददकी जरूरत है। हम जैसेजैसे आगे बढ़ेंगे वैसे-वैसे हमपर इस प्रकारके ऐच्छिक कर भी निश्चय ही बढ़ते जायेंगे। हमें अपनी सामर्थ्यके अनुसार इन ऐच्छिक करोंको चुकाकर उनसे मुक्ति पानी चाहिए। जिनका विचार सहायता करनेका हो उन्हें आश्रम अथवा श्री सी॰ एफ॰ एन्ड्र्यूज, शान्तिनिकेतन, बोलपुर; ईस्ट इंडिया रेलवेके पतेपर अपने चन्देकी रकम भेजनी चाहिए।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ११-७-१९२०
 
  1. सौराष्ट्रमें।