- अवांछित सत्ता सौंप दी गई है। उसे यह अधिकार दे दिया गया है कि वह किसी भी व्यक्तिको उसपर मुकदमा चलाये बिना ही निर्वासित कर सकता है। उस अधिकारका अमल केवल भारतीयोंके विरुद्ध ही किया जाता है। यह सभा उसका जोरदार विरोध करती है और उक्त राज्यमें बसे हुए भारतीयोंके दूसरे कष्टोंको जैसे पुलिसकी रक्षाका अभाव, कृत्रिम आर्थिक निर्योग्यताएँ जो अब लड़ाईके पहले प्रचलित अन्तःकालीन जर्मन करंसी नोटोंको अवैध करार दे दिये जानेसे उत्पन्न हुई हैं, विनियम सम्बन्धी जटिलता और यात्रा सम्बन्धी प्रतिबन्ध इत्यादि बातोंपर बहुत चिन्ता प्रकट करती है। इस सभाकी रायमें इन निर्योग्यताओंके परिणाम-स्वरूप ब्रिटिश भारतीय प्रवासियोंकी दशा जर्मन शासनके दिनोंकी अपेक्षा बदतर हो गई है। यह सभा विश्वास करती है कि भारत सरकार भारतीयोंके उन कष्टोंको जिनके बारेमें शिकायत की जा चुकी है दूर करानेकी अविलम्ब व्यवस्था करेगी।
श्री गांधीने कहा कि प्रस्ताव श्री सी॰ एफ॰ एन्ड्र्यूज द्वारा पेश किया जानेवाला था परन्तु वे ऑपरेशनके कारण हाजिर नहीं हो सके हैं। मैं उन्हींकी ओरसे यह प्रस्ताव रख रहा हूँ। उन्होंने मुझसे यह भी कहा था कि इस अवसरके लिए उनके द्वारा लिख भाषणको मैं पढ़ सुनाऊँ:
श्री गांधीने तब श्री एन्ड्र्यूजका भाषण पढ़ सुनाया...।[१]
श्री मो॰ क॰ गांधीने निम्नलिखित प्रस्ताव पेश किया:
यह सभा भारत सरकारसे प्रार्थना करती है कि भारतीयोंकी अभी हालमें की गई हड़ताल तथा उस सिलसिलेमें जो गोलियाँ चलाई गईं थीं उसके बारेमें उसके तथा फीजी सरकारके बीच जो पत्र-व्यवहार हुआ है उस पूरे पत्र-व्यवहारको प्रकाशित कर दे। सभा भारत सरकारसे यह भी माँग करती है कि फीजीमें बसे हुए उन भारतीयोंको जो भारत लौटना चाहते हैं स्वदेशयात्रा सम्बन्धी सुविधाएँ शीघ्र देनकी कृपा करे। यह सभा फीजी सरकारके उस हक्मका विरोध करती है जिसके द्वारा फीजीके पुराने वकील श्री मणिलाल डाक्टरको [२], उनपर मुकदमा चलाये बिना ही, निर्वासित कर दिया गया है और सरकारसे यह माँग भी करती है कि उनपर जारी किया गया हुक्म वापस ले लिया जाये।
श्री गांधीने प्रस्ताव पेश करते समय कहा कि इस प्रस्तावमें फीजीके भारतीयोंकी उन दिनोंकी दशाका जब वे गिरमिटियोंको हैसियतसे काम कर रहे थे, यह प्रथा सौभाग्यसे अब बन्द कर दी गई है, कोई उल्लेख नहीं है। जो लोग इस प्रश्नका अध्ययन करना चाहते हैं उन्हें चाहिए कि वे शाही परिषद्म गिरमिट-प्रथाके सम्बन्धमें