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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और पण्डित मदनमोहन मालवीय उस घटनाके बाद यथासम्भव शीघ्र पंजाब गये थे और उन्होंने पंजाबके उन नेताओंका काम अपने हाथमें ले लिया था जो जेल भेजे जा चुके थे। श्री मणिलाल डाक्टर और श्रीमती मणिलाल डाक्टरका रिक्त स्थान कौन भरे? देशको अधिकार है कि वह इस मामलेमें इन्साफकी माँग करे। श्री गांधीने सभामें उपस्थित लोगोंका ध्यान उस उत्तरकी ओर आकर्षित किया जो स्वर्गीय सर जॉन गॉर्स्टन एक साल पूर्व मणिपर-आक्रमणके सम्बन्धमें दिया था। सर गॉर्स्ट एक मुँहफट भारत उप-सचिव थे। उन्होंने सदनमें कहा था कि ब्रिटिश सरकारकी भारतके सम्बन्धमें यह नीति है कि अफीमके बढ़े हुए पौधों को निर्मूल कर दिया जाये। क्या हम यह जान लें कि श्री मणिलाल और श्रीमती मणिलाल अफीमके ऐसे ही पौधे थे? यह देखना भारतका कर्त्तव्य है कि जनताके सहज नेताओंको चुपचाप बिना किसी मुकदमे के यों ही उनसे पृथक न कर दिया जाये। गांधीजीने अपने भाषणको समाप्त करनेसे पूर्व कहा कि आप लोगोंको यह नहीं सोचना चाहिए कि [अबतक शायद] दक्षिण आफ्रिकाका प्रश्न साम्राज्यीय नागरिकता संघ (इम्पीरियल सिटिजनशिप एसोसिएशन) की किसी अबहेलना अथवा उसके अपेक्षाकृत कम महत्त्व का होनेके कारण आप लोगोंके सम्मुख नहीं रखा जा सका है। यह संघ भारत सरकारसे बराबर घनिष्ठ सम्पर्क बनाये हुए है; इस प्रश्नको सामने न लानेका कारण यह है कि अभीतक एशियाई आयोगने अपनी रिपोर्ट पेश नहीं की है। देशको मालूम है कि भारत सरकार दक्षिण आफ्रिकाके घटना-चक्रको उत्सुकताके साथ देख रही है। जब अवसर आयेगा तब यह संघ अवश्य ही दक्षिण आफ्रिकाके बारेमें भी देशको उसी तरह सचेत करेगा जैसा कि उसने फीजी और पूर्वी आफ्रिकाके मामलोंमें किया है।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १४-७-१९२०

२८. कौंसिलोंका बहिष्कार

कौंसिलोंके प्रस्तावित बहिष्कारके सम्बन्धमें पण्डित रामभजदत्त चौधरीने[१]लाला लाजपतरायका विरोध किया है। मद्रासमें इस प्रश्नपर दो मत हैं। वहाँके अधिकांश राष्ट्रवादी नेता कौंसिलोंके बहिष्कारके लिए राजी नहीं मालूम होते हैं। 'मराठा' ने अपने एक युक्तियुक्त लेख में कौंसिलोंके बहिष्कारका विरोध किया है। बहिष्कारकी नीति अस्वीकार करने के दो मुख्य कारण हैं: (१) यदि राष्ट्रवादी कौंसिलोंका बहिष्कार करते हैं तो सब सीटोंपर नरम दलवाले पहुँच जायेंगे; (२) चूँकि विधान परिषदोंके माध्यमसे हमने अभीतक कुछ प्रगति की है, इसलिए हम कौंसिलोंके जरिये अब और

  1. पंजाबके एक नेता और कवि; जिन्होंने अपनी पत्नी सरलादेवीके साथ पंजाबकी सार्वजनिक हलचलोंमें प्रमुख भाग लिया था।