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कौंसिलोंका बहिष्कार

अधिक प्रगति कर सकेंगे; क्योंकि इन कौंसिलोंमें जनताके प्रतिनिधियोंको अधिक अधिकार दिये गये हैं।

अब पहला कारण ऐसा है जो एक बड़ी और लोकप्रिय दलकी प्रतिष्ठाके अनुकूल नहीं है। यदि कौंसिलोंमें प्रवेश करना हानिकारक है तो फिर राष्ट्रवादियोंको नरमदलबालों द्वारा कौंसिलोंमें सीटें हथिया लेनेकी बातपर उद्विग्न नहीं होना चाहिए। नरमदलवाले कौंसिलोंमें जानेसे परहेज नहीं करेंगे, क्या केवल इसीलिए एक झंझटमें पड़ना कोई लाजिमी बात हो जाती है। अथवा वे यह कहना चाहते हैं कि यदि सभी लोग असहयोग अथवा बहिष्कारको स्वीकार नहीं करते तो कौंसिलोंसे बचा भी कैसे जा सकता है? उनके कथनका यही आशय है तो स्पष्ट है कि वे बहिष्कारके सिद्धान्तोंसे अपरचित हैं। हम किसी संस्थाका उसी सूरतमें बहिष्कार करते हैं जब उसे पसन्द न करते हों या जब हम उस संस्थाके संचालकोंके साथ सहयोग न करना चाहते हों। कौंसिल-प्रवेश न करनेका निर्णायक कारण यह अन्तिम बात ही हो सकती है। मेरा निवेदन यह है कि भले ही कौंसिल-प्रवेश करनेमें आपका मकसद अड़ंगे डालना ही हो, परन्तु उनमें जाना एक प्रकारसे सरकारके साथ सहयोग करना ही है। ऐसी बहुत-सी कौंसिलें हैं जो अड़ंगोंकी बदौलत ही फलती-फूलती हैं; ब्रिटेनकी विधान परिषद् स्वयं इसका सर्वोत्तम नमूना है। आयरलैण्डके सदस्योंकी योजनाबद्ध अड़ंगेबाजीका ब्रिटेनकी कॉमन सभापर कोई कहने योग्य असर नहीं हुआ। आयरलैंडके निवासी जिस स्वशासनकी माँग कर रहे थे वह उन्हें नहीं मिला। 'मराठा' की दलील यह है कि अड़ंगेबाजी सक्रिय और उग्र असहयोग ही होगी। मैं इसे मानने से इनकार करता हूँ। मेरे मतानुसार तो इससे अपने प्रति अर्थात् अपने सिद्धान्त के प्रति विश्वासकी कमी जाहिर होती है। दुविधा में पड़ना मृत्युको बुलाना है। यदि राष्ट्रवादी कौंसिलोंका बहिष्कार कर दें तो मेरी समझमें अंग्रेज अथवा नरमदलके लोग इस घटनाको अविचलित भावसे स्वीकार नहीं कर सकते। आज हमारे सामने प्रश्न बिलकुल साफ है। क्या कोई नरमदलीय नेता यह जानते हुए भी कि उसके आधेसे अधिक मतदाता उसकी उम्मीदवारीका समर्थन नहीं करते कौंसिल-प्रवेशकी इच्छा करेगा? मेरा तो खयाल यह है कि ऐसा कौंसिलप्रवेश विधि-सम्मत भी नहीं होगा। क्योंकि ऐसा सदस्य अपने निर्वाचन-क्षेत्रका प्रतिनिधित्व नहीं करता। बहिष्कारकी मेरी कल्पनामें अनुशासनबद्ध आन्दोलन और सतर्क प्रचार ग्रहीत है। और इसका आधार है मेरा यह विश्वास कि स्वयं मतदाता अड़ंगेबाजीके रूपमें किये गये अपूर्ण बहिष्कारकी अपेक्षा पूर्ण बहिष्कार पसन्द करेंगे। अगर यह मान लिया जाये कि लोग पूर्ण बहिष्कार नहीं चाहते तो उसमें आस्था रखनेवालोंका कर्त्तव्य हो जाता है कि वे मतदाताओंको यह समझानेका प्रयत्न करें कि अड़ंगे डालनेकी अपेक्षा बहिष्कार करना अच्छा है। कौंसिलोंमें प्रविष्ट होनेका अर्थ वहाँ बहुमतके आगे सर झुकाना अर्थात् सरकारसे सहयोग करना है। और अगर हम सरकारके यन्त्रको ही ठप कर देना चाहते हैं, और ऐसा है भी, तो हमें चाहिए कि खिलाफतके प्रश्न तथा पंजाबके मामलेमें हमारे साथ न्याय होनेतक हम अपनी सारी शक्ति सरकारके विरोधमें लगायें। अतः हम कौंसिलोंमें बहुमतके आगे सिर झुकाने से इनकार करें, क्योंकि वह कौंसिल न तो