पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

देशकी इच्छाका प्रतिनिधित्व करेगी और न हमारा ही——यह दूसरी बात हमारे सिद्धान्तको देखते हुए अधिक उपयुक्त है। जो पदपर रहने से इनकार कर देता है वह मन्त्री उस मन्त्रीसे अच्छा है जो विरोध जाहिर करके भी पदपर बना रहता है। विरोधभाव जाहिर करके भी पदपर बने रहने से ऐसा लगता है मानो स्थिति असह्य नहीं है। मैं कहता हूँ कि सरकारने जो स्थिति उत्पन्न कर दी है वह असहनीय है इसलिए जिसे आत्मसम्मान प्रिय है उस व्यक्ति के लिए तो एक ही मार्ग शेष रह जाता है, असहयोग करना——अर्थात् सारे सम्बन्धोंका पूरा-पूरा त्याग। जनरल बोथाने[१]लॉर्ड मिलतरकी[२]कौंसिल में प्रविष्ट होने से इस कारण इनकार किया था क्योंकि वे उस सिद्धान्तको कतई पसन्द नहीं करते थे जिसके अनुसार लॉर्ड मिलनर बोअरोंके साथ व्यवहार किया करते थे। जनरल बोथाको सफलता मिली और उसका कारण यह था कि उनको लगभग पूरे ट्रान्सवालका समर्थन प्राप्त था। राजनीतिके दृष्टिकोणसे देखकर कहें तो सफलताका दारोमदार देशके द्वारा बहिष्कार आन्दोलनको अपनानेपर है। धार्मिक दृष्टिकोणसे देखें तो कह सकते हैं कि जब कोई व्यक्ति अपने सिद्धान्तके अनुसार आचरण करता है तो उसे सफलता प्राप्त हुए बिना नहीं रहती; और राष्ट्रीय सफलता भी इसी कारण असंदिग्ध बन जाती है कि सीधेसे-सीधा मार्ग दिखाकर सफलता प्राप्त करनेकी बुनियाद डाल दी गई है।

दूसरी दलील यह पेश की जाती है कि इन नई कौंसिलोंमें प्रवेश करनेपर सफलता अवश्यम्भावी इसलिए भी है कि हम इससे पूर्व अपेक्षाकृत कम प्रजातन्त्रीय संस्थाओंमें प्रविष्ट हो चुके हैं और हमने वहाँ भी काफी अच्छा काम करके दिखाया है। इस दलीलके उत्तरमें कहा जा सकता है कि उस वक्ततक हमारे बीच कोई खाई नहीं बन पायी थी; हम लोगों के हृदयोंमें ब्रिटेनकी ईमानदारी और न्याय-प्रियताके प्रति शंका उत्पन्न नहीं हुई थी या यों कहिये कि उस समय हम बहिष्कारको सफल कर सकनेके सम्बन्धमें आश्वस्त नहीं थे या कहिए जिस तरीकेको हम आज अपनाये हुए हैं उस समयतक वह हमारे सामने नहीं आ सका था। कदाचित् उपर्युक्त तीनों बातें इसका कारण रही हों। आखिरकार तरीके और ढंग तो समयके साथ बदलते रहते हैं। ज्यों-ज्यों काल बीतता जाये अधिकाधिक बुद्धिमान होते जाना चाहिए। जो भोजन बचपनके दिनोंमें हमारे लिए उपयुक्त था वह आज जवानीमें उपयुक्त नहीं हो सकता।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १४-७-१९२०

 
  1. (१८६२-१९१९); बोअर जनरल तथा राजनीतिज्ञ; ट्रान्सवालके प्रधान मन्त्री, १९०७; दक्षिण आफ्रिका संघके प्रधान मन्त्री, १९१०-१९ ।
  2. (१८५४-१९२५ ); ट्रान्सवाल तथा ऑरेंज रिवर कॉलोनीके गवर्नर, १९०१-५; दक्षिण आफ्रिका के उच्चायुक्त, १८९७-१९०५; उपनिवेश सचिव, १९१९-२१ ।