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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आग्रह सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण मामलोंतक ही सीमित रखना चाहिए। अन्य ऐसे सब मामलोंमें जिनमें निजी धर्म या नीति-संहितापर आँच न आती हो, व्यक्तिको बहुमतके निर्णयके सामने सिर झुकाना ही चाहिए। इस दृष्टिसे उक्त प्रस्तावको प्रस्तुत करनेका अवसर मुझे अपनी [अनाग्रही] स्थितिको व्यक्त करनेका अवसर था। मेरे कथित हठी स्वभावके तो अनेक उदाहरण देशके सामने रखे जा चुके हैं। बिना परेशानीके दूसरोंके सामने झुक सकनेके एक ऐसे अवसरका हाथ लगना खुशीकी बात थी। यों मेरा अब भी यही खयाल है कि देशका जनरल डायरपर मुकदमा चलाये जाने और सर माइकेल ओ'डायरकी सदनमें भर्त्सना करनेकी माँग पेश करना ठीक नहीं है। वह तो ब्रिटिश सरकारका ही काम है। मैं तो यह चाहता हूँ कि अपराधियोंको साम्राज्य के अन्तर्गत किन्हीं भी पदोंपर न रखा जाये। उस वक्तसे अभीतक अपनी राय बदलने लायक ऐसी कोई बात मेरी नजरमें नहीं आई। और मैंने इस बातपर जिस सभामें यह प्रस्ताव पेश किया था उसी सभामें अपनी यह बात भी जोर देकर सामने रखी थी। जनरल डायरपर मुकदमा चलाये जानेकी माँग करने में कोई नैतिक दोष नहीं है। इसलिए मैंने प्रस्ताव पेश किया। देशको ऐसी माँग पेश करनेका हक है फिर भी कांग्रेस उप-समितिने सलाह दी है कि यदि हम उस अधिकारपर अड़े नहीं तो उससे देशका भला ही होगा। किन्तु मैंने सोचा कि मेरी स्थिति बिलकुल स्पष्ट है; मैं आज भी मुकदमा चलाये जानेके खयालके विरुद्ध हूँ; फिर भी मुकदमा चलाये जानेकी बात सम्मिलित करनेवाले प्रस्तावको प्रस्तुत करने में मुझे कोई आपत्ति इसलिए नहीं है कि वह विचार अपने आपमें बुरा अथवा हानिकारक नहीं था।

परन्तु मैं यह स्वीकार करता हूँ कि जिस संकटमय परिस्थिति से होकर हम लोग गुजर रहे हैं उसमें मेरे द्वारा उस प्रस्तावका प्रस्तुत किया जाना एक खतरनाक प्रयोग था, क्योंकि इस अवसरपर हम सार्वजनिक व्यवहारकी नई संहिता तैयार करने तथा जनसाधारणको शिक्षित या प्रभावित करने या उसका मार्ग-दर्शन करनेका प्रयास कर रहे हैं; ऐसे समय कोई ऐसा काम करना उचित न होगा जिससे जनसाधारणके मनमें उलझन पैदा हो जाये या जिससे ऐसा लगे कि हम जनताकी खुशामद कर रहे हैं। मेरा खयाल है कि इस समय हठी और निरंकुश कहलाया जाना, जनताकी वाहवाही लूटनेकी गरज से उसकी हाँ-में-हाँ मिलानेका आभास देनेकी अपेक्षा अच्छा है। यदि हम जनताकी निरंकुशतासे बचना चाहते हैं और यदि हम व्यवस्थित रूपसे देशकी उन्नति करनेके इच्छुक हैं तो उन लोगों को जो जनसाधारणका नेतृत्व करनेका दावा करते हैं जनताका मुँह देखकर नहीं चलना चाहिए। मेरा विश्वास है कि किसी व्यक्तिका अपनी रायकी उद्घोषणा-भर करते रहकर जनसाधारणकी रायके आगे नतमस्तक हो जाना केवल अपर्याप्त है इतना ही नहीं बल्कि महत्त्वपूर्ण मामलोंमें यदि जनताकी राय नेताओंको बुद्धिसंगत प्रतीत नहीं होती तो जनसाधारणकी सम्मति के विपरीत कदम उठाना नेताओंका कर्त्तव्य हो जाता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १४-७-१९२०