बिना सोचे-समझे सर्वथा निर्दोष लोगोंको परेशान और कैद किया गया, और तब भी यह सब करनेवाले अधिकारी अपने पदोंपर बरकरार हैं और उनके हाथों में अत्याचार करनेकी सत्ता बनी हुई है।
यंग इंडिया', १४-७-१९२०
३३. भाषण : जालन्धरमें
१५ जुलाई, १९२०
हिन्दुस्तानीमें दिये गये एक छोटे-से भाषणमें महात्माजीने असहयोगका अर्थ पूरी तरह समझाया। उन्होंने कहा:
जहाँतक मुसलमानोंका सम्बन्ध है, उलेमाओं-सहित मेरे उन सभी मुसलमान मित्रों और भाइयोंने, जिन्हें सारे भारतमें सम्मानकी दृष्टिसे देखा जाता है, मुझे भरोसा दिलाया है कि कोई भी सच्चा मुसलमान उस सरकारको किसी प्रकारकी सहायता नहीं दे सकता जिसने अपने धार्मिक दायित्वकी उपेक्षा की है और जिसने उनके तीव्र विरोधोंके बावजूद इस्लामके पवित्र स्थानोंपर दखल जमा लिया है। पंजाबमें तो जोकुछ मुसलमानोंको झेलना पड़ा वही हिन्दुओंको भी, और अगर खिलाफतका सवाल न भी होता तो सिर्फ पंजाबका मामला ही इस दृष्टि से काफी है कि जिस सरकारने कांग्रेस कमेटी द्वारा सुझाई गई बहुत ही नरम ढंगकी सिफारिशोंको माननेसे आखिरकार इनकार कर दिया है, उसके साथ सहयोग न किया जाये।
उन्होंने सभीसे अनुरोध किया कि पूर्ण धार्मिक स्वतन्त्रता प्राप्त करने तथा अपने देशका नाम उजागर करनेके लिए वे इस आन्दोलनको अपनायें और आगे बढ़ायें। उन्होंने उपस्थित महिलाओंसे अनुरोध किया कि वे कताईको अपना खास काम मानकर उसे फिरसे अपनायें और बुनकरोंको अपना पुराना धन्धा एक बार फिरसे चलानेके लिए प्रोत्साहित करें।
अमृतबाजार पत्रिका, २१-७-१९२०