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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/८१

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३४. भाषण : असहयोगपर[]

१६ जुलाई, १९२०

श्री गांधी जब बोलनेको खड़े हए तो लोगोंने उत्साहके साथ हर्षध्वनि की। श्री गांधीने कहा कि पंजाबके साथ किये गये अन्यायको लेकर मेरा मन कितना व्यथित है, इसे पूरी तरह व्यक्त कर पाना मेरे लिए असम्भव है। मैं तो पंजाबके हिन्दू और मुसलमान भाइयोंसे सिर्फ इतना ही कहूँगा कि वे १९१९ के अप्रैल माहके उस दुर्भाग्यपूर्ण दिनको[]कभी न भूलें। मैं यह तो स्वीकार करता हूँ कि अधिकारियोंकी तरह ही जनताने भी गलती की, फर्क केवल कम या अधिकका है। अगर जनताकी गलतीका वजन पौंडोंमें किया जा सकता है, तो अधिकारियोंकी ज्यादतीका वजन टनोंमें किया जायेगा। लेकिन जबतक जनतासे तनिक भी गलती होना लाजिम है तबतक उसे जलियाँवाला बागके ढंगकी सैकड़ों विभीषिकाओंके लिए तैयार रहना चाहिए; और जबतक लोग हिंसात्मक प्रवृत्तिसे सर्वथा मुक्त नहीं हो जाते तबतक मैं उनसे पूरी तरह संतुष्ट भी नहीं हो सकता। लेकिन जब सारी गलतीकी जिम्मेदारी सरकारकी ही होगी तो स्थिति बदल जायेगी। तब मैं सभी लोगोंसे कहूँगा कि वे अपने-आपको बिलकुल मुक्त मानकर उठ खड़े हों और उस सरकारसे कोई नाता-रिश्ता न रखें जो उनके सम्मान और स्वाभिमानके साथ खिलवाड़ करती है। पंजाबके सम्बन्धमें बोलते हुए श्री गांधीने कहा कि मैं अनुभव करता रहता हूँ कि पंजाबके लोगोंने, चाहे वे अपनी बहादुरीके लिए कितने भी विख्यात हों, गत अप्रैल माहमें अपनी भूमिका ठीकसे नहीं निबाही। वे भयभीत हो गये, उनकी हिम्मत टूट गई। मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। अगर वे भयभीत न हो गये होते, उनकी हिम्मत टूट न गई होती तो यह कैसे सम्भव था कि उन्हें जमीनपर नाक रगड़ते हुए रेंगकर चलनेका आदेश[]दिया जाता और वे इस बर्बरताको स्वीकार कर लेते? अगर उनमें तनिक भी आत्म-सम्मानकी भावना थी, अगर वे अपने-आपको मनष्य मानते थे तो इस तरह आदमीके दर्जेसे गिराया जाना स्वीकार कैसे कर लेते? अगर उन्हें अपने पुंसत्व, अपने आत्माभिमान और सम्मानका तनिक भी खयाल होता तो उन्होंने सर झुकाकर इस अपमानको बरदाश्त करने के बजाय खुशी-खुशी मौतको गले लगाया होता। लेकिन मैं यहाँ व्यर्थ ही पंजाबके लोगोंके दोष दिखानेको नहीं आया हूँ। मेरा यह नाशवान् शरीर भी

  1. यह भाषण अमृतसरके अंजुमन पार्क में स्थानीय खिलाफत समिति द्वारा आयोजित सभामें दिया गया था। सभामें गांधीजीके अलावा शौकत अली और डा॰ किचलू भी बोले थे।
  2. १३ अप्रैल—जलियाँवाला बागके गोलीकाण्डका दिन।
  3. तात्पर्य जनरल डायर द्वारा २० अप्रैल, १९१९ को जारी किये गये रेंगकर चलनेके आदेशसे है।