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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उन्हीं तत्त्वोंसे बना हुआ है जिनसे पंजाबियोंका निर्माण हुआ है। मैं निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता कि ऐसी परिस्थितियोंसे सामना पड़नेपर भी मेरी हिम्मत टूट नहीं जायेगी। मैं तो ईश्वरसे सिर्फ यह प्रार्थना ही कर सकता हूँ कि वह मुझे इतना बल दे कि मैं कभी भी ऐसे अपमानोंको बरदाश्त न करूँ——तब भी नहीं जब मेरे सामने इसका एकमात्र विकल्प मृत्युको गले लगाना हो। आप लोगोंने अपनी आशा इंटर समितिपर[१]केन्द्रित कर रखी है; आपको लगता है कि वह अपराधियोंको समुचित दण्ड देकर आपके अपमानोंको घो देगी। लेकिन आपकी यह आशा बेकार है और फिर अब तो पंजाबके अन्यायके साथ खिलाफत-सम्बन्धी अन्याय भी जुड़ गया है। मेरा निश्चित विश्वास है कि आप क्रोध और आवेशमें कोई काम करके इन अन्यायोंका निराकरण नहीं करवा सकते। उनका निराकरण तो ठंडे दिमागसे काफी सोचसमझकर की गई कार्रवाइयोंसे ही सम्भव है। एक सबसे अच्छा कदम है असहयोग। इसके बाद श्री गांधीने उन्हें असहयोगके विभिन्न चरण समझाते हुए कहा कि अगर पहली अगस्त सारे भारतमें सामान्य विरोध-प्रदर्शनके एक शान्तिपूर्ण दिनके रूपमें बीत गई तो इसका मतलब होगा, आपने सफलताके लिए एक सुदृढ़ नींव डाल दी। अगर हिंसा हुई तो यह आन्दोलन स्वयंमेव ठप हो जायेगा। मेरा आपसे हार्दिक अनुरोध है कि आप सब सचाई और बहादुरीसे एक सच्चे सिपाहीकी तरह काम करें, ऐसे सिपाहीकी तरह जो नीचताके साथ दूसरोंकी जान लेनेमें नहीं बल्कि उदारताके साथ अपनी जान दे देने में गौरवका अनुभव करता है। श्री गांधीने आगे कहा, सम्भव है कि इस देशके बहुत-से मुसलमान, जिनमें इस सभामें उपस्थित मुसलमान भी शामिल हैं, अभी यह न जानते हों कि टर्कीके साथ शान्ति-सन्धिकी शर्ते इस्लामके लिए कितने गम्भीर अपमानकी बात है। उन सबको काफी सावधानीके साथ प्रचार-कार्यके द्वारा यह चीज समझानी होगी, और यह काम अब शीघ्र ही शुरू किया जायेगा। लेकिन जहाँतक पंजाबके अपवादका सम्बन्ध है, श्री बॉसवर्थ स्मिथ, कर्नल ओ'ब्रायन, श्रीराम तथा मलिक खाँने यहाँके लोगोंका जिस तरह अपमान किया, उसके बारेमें तो कोई भी अनजान नहीं है। यह मार सभी वर्गों, सभी दलोंपर समान रूपसे पड़ी और आपमेंसे अधिकांश लोगोंको उसका प्रत्यक्ष अनुभव है। फिर जबतक ये अधिकारी पंजाबमें बने हुए हैं तबतक आप अपनेको किस मुँहसे मनुष्य कह सकते हैं, कैसे यह दावा कर सकते हैं कि आपमें आत्माभिमान और सम्मानको तनिक भी भावना है? सम्भव है आपको खिलाफतके सवालकी कोई जानकारी न हो, लेकिन जलियाँवालाको विभीषिकाकी स्मृति तो आपके हृदय-पटलपर इस तरह अंकित है कि उसे कभी मिटाया ही नहीं जा सकता।

  1. भारत सरकारने यह समिति बम्बई, दिल्ली और पंजाबमें अप्रैल महीनेमें हुए उपद्रवोंकी जाँच करनेके लिए १४-१०-१९१९ को नियुक्त की थी। समितिने सरकार के सामने अपनी रिपोर्ट ८ मार्च, १९२० को पेश की जो २८ मई, १९२० को प्रकाशित हुई थी।