इसके बाद श्री गांधीने श्रोतृ-समूहसे पूछा कि क्या आपके बीच श्री गुलाम जीलानी[१]उपस्थित हैं——गुलाम जीलानी, जिनके साथ किये गये अत्याचार और नृशंसताको कोई भी भूल नहीं सकता। श्रोताओंमें से उन्हें किसीने बताया कि वे तो हिजरतपर गये हैं। इसपर श्री गांधीने कहा कि इस प्रकार उन्होंने सम्मानके साथ इस देशका परित्याग कर दिया है, लेकिन वे अपने पीछे अपने भाइयोंको छोड़ गये हैं, जो ईश्वरके सामने अब जिम्मेदार हैं कि उस सम्मानको सफलतापूर्वक कायम रखें। तो क्या पंजाब उस सम्मानकी रक्षाके लिए कुछ नहीं करेगा? आपके सामने एकमात्र उपाय असहयोग है। यही सबसे स्वाभाविक उपाय है। लेकिन यह नहीं हो सकता कि लोग सरकारकी कौंसिलों और अदालतोंकी कार्रवाईमें भाग भी लें और उसके विरुद्ध असहयोग भी करें। मुझसे लोग अक्सर पूछते हैं कि अगर हम सरकारी नौकरी छोड़ देंगे, अगर हम उन पेशोंको छोड़ देंगे जो हमारी जीविकाके एकमात्र साधन हैं तो हम गुजारा कैसे कर पायेंगे? लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि जबतक आपके पास ईश्वरके वरदानस्वरूप दो हाथ और दो पाँव हैं, तबतक आप अपनी जीविकाके लिए उसी हाथ-पाँव देनेवालेपर भरोसा रख सकते हैं। मैं यह माननेको तैयार नहीं हूँ कि भारतके सभी मुसलमान हिजरत करेंगे, लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि वे असहयोग कर सकते हैं और उन्हें असहयोग करना चाहिए। उन्हें यह याद रखना चाहिए कि उनके सहयोग के बिना सरकारका तन्त्र एक दिन भी नहीं चल सकता।
इसके बाद उन्होंने पहली अगस्तके कार्यक्रमका महत्त्व बताते हुए उनसे अनुरोध किया कि आप यह दिवस पूरी तरह शिष्ट और शान्त ढंगसे मनायें। मैं यहाँ कौंसिलोंके बहिष्कारके सवालपर विचार करने को तैयार नहीं हूँ, क्योंकि मैं जनता और नेताओंके बीच कोई मतभेद उत्पन्न करना नहीं चाहता। मैं तो लोगोंको उनके स्थानीय नेताओंकी इच्छापर छोड़ता हूँ। और जहाँतक खुद मेरी बात है, मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि असहयोगकी दृष्टिसे कौंसिलोंका बहिष्कार एक आवश्यक कदम है, और मैं बम्बई में जहाँ-कहीं भी रहूँगा, वहाँसे इसका प्रचार करता ही रहूँगा। भाषणके अन्तमें श्री गांधीने, जिस चीजको वे स्वदेशीका मूलमन्त्र मानते हैं, उसपरअर्थात् हाथसे कते सूतके हाथसे ही बुने कपड़ोंके उपयोगपर जोर दिया। उन्होंने कहा कि लोग सिर्फ ऐसे ही वस्त्रका उपयोग करें। खिलाफत-दिवसपर स्वदेशीका महत्त्व इस बातमें है कि इस तरह लोग अंग्रेजोंको यह प्रतीति करा सकते हैं कि कपड़ेजैसी आवश्यक वस्तुओंके सम्बन्धमें भी कोई राष्ट्र उनके बिना काम चला सकता है और उस हदतक स्वतंत्र हो सकता है। और जिस क्षण उन्हें यह प्रतीति हो
- ↑ एक मसजिद के इमाम, जिन्होंने रामनवमी के उत्सवका आयोजन करनेमें भाग लिया था। उन्हें १६-४-१९१९ को गिरफ्तार करके उनके साथ बड़ा अत्याचार किया गया; देखिए खण्ड १७, पृष्ठ २१२-२१३ ।