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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
- जायेगी उसी क्षण भारत जिस न्यायकी माँग कर रहा है वह न्याय दिलानेमें वे इसके साथ कन्धेसे-कन्धा मिलाकर चलनेको तैयार हो जायेंगे।
- अन्तमें पेशावरकी अभी हालकी घटनाकी थोड़ी चर्चा हुई और विशेष रूपसे इस बातकी कि मुहाजरीनोंकी यात्राको सुरक्षित बनानेके लिए भविष्य में क्या किया जाये। इसके बाद सभा समाप्त हो गई।
[अंग्रेजी से]
ट्रिब्यून, २७-७-१९२०
ट्रिब्यून, २७-७-१९२०
३५. भाषण : लाहौरमें
१७ जुलाई, १९२०
- शनिवार १७ जुलाई, १९२० को दिल्ली गेटके बाहर पं॰ रामभजदत्तकी अध्यक्षतामें लाहौरके नागरिकों की एक सार्वजनिक सभा हुई।
- गांधीजी ज्यों ही अपना भाषण देनेके लिए उठे त्यों ही जोरकी हर्षध्वनि हुई। वे हिन्दी में बोले।[१]उन्होंने कहा कि मैं कुछ ही शब्द कहूँगा। पेशावरकी घटनाके सम्बन्धमें श्री जफरअली खाँ[२]ने जो विवरण हम लोगोंके सम्मुख प्रस्तुत किया है उसे सुनकर हमें क्षोभ हुआ है। वैसे इसमें रोनेकी कोई बात नहीं है। जब वे बोल रहे थे तब मैंने आप लोगों में से कुछको रोते देखा। अगर आप लोग खिलाफतके प्रश्नका समाधान कराना चाहते हैं तो आप लोगोंको रोना छोड़ देना चाहिए। आप लोग एक साम्राज्यके विरुद्ध ही नहीं बल्कि समूचे ईसाई संसारके खिलाफ युद्ध कर रहे हैं। यूरोपीय लोग चतुर, होशियार, धूर्त और शस्त्रोंके प्रयोगमें पारंगत हैं। उनमें त्यागभावना भी है। गत महायुद्धके दिनोंमें प्रत्येक परिवारने कमसे-कम एक व्यक्ति लड़ाईके लिए दिया था। अपने वाइसरायको ही लीजिए; उनका एक पुत्र उस युद्धमें मारा गया था; परन्तु उन्होंने बाह्य रूपसे एक दिन भी दुःख प्रकट नहीं किया। ईश्वरके कार्यके लिए हमें आत्मत्यागी बनना चाहिए और रोना तो हरगिज नहीं चाहिए। रक्तपात हो तो भी धैर्य नहीं खोना चाहिए। यदि [धैर्य खोकर] आप चन्द यूरोपीयोंको मार डालनेमें सफल हो जायें तो उससे कोई लाभ नहीं होगा। यदि मैं असहयोगपर व्याख्यान देनेके लिए यूरोप जाऊँ तो वहाँके लोग मुझपर हँसेंगे, परन्तु संसारमें शरीरबल ही सब-कुछ नहीं है। यूरोपीय लोग युद्ध-कौशल जानते हैं। पुराने जमानेमें कोई सशस्त्र व्यक्ति प्रतिद्वंद्वी या शत्रुके हाथमें भी खड्ग आ जानेतक युद्ध नहीं करता था। परन्तु आजकल तो बम, हवाई जहाज और तोपें इत्यादि निकल आये हैं।