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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर्त्तत्वहीन बने रहते हैं। जान पड़ता है इस मान्यताने पुरुष वर्गको भी अबला बना दिया है। कितना अच्छा हो यदि हिन्दुस्तानके लोग यह समझ लें कि वस्तुतः ऐसी कोई बात नहीं है। हिन्दुस्तानकी जनताकी जब आत्म-सम्मानकी प्रतीति हो जायेगी तभी वह सबल बनेगी तथा तदुपरान्त यहाँ जनरल डायर नहीं रह पायेंगे।

ऐसा बल किस तरह आये? इसके लिए किसी बड़े प्रशिक्षणकी जरूरत नहीं है। ईश्वरपर विश्वास करके हमें किसीके शरीरबलसे नहीं डरना चाहिए। शरीरबलके धनी अधिकसे-अधिक हमारे प्राण ले सकते हैं। उस शरीरके प्रति जब हम निडर हो जाते हैं तभी सिंह बनते हैं। इसलिए वास्तविक बल राक्षसी शरीर प्राप्त करनेमें नहीं वह तो मानसिक दृढ़ता, आत्माकी पहचान तथा मौतके प्रति निडर-भाव रखने में है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १८-७-१९२०

 

३८. स्वदेशी

मैं शुद्ध स्वदेशी[१]सम्बन्धमें अबतक जो-कुछ लिख चुका हूँ, उसपर पाठकोंको मनन करनेकी सलाह देता हूँ। चरखेके सम्बन्धमें आजके 'नवजीवन' में जो खबर[२]दी गई है उसे पढ़कर प्रत्येक स्वदेशी प्रेमी स्त्री-पुरुषको प्रसन्नता हुए बिना नहीं रहेगी।

यहाँ मैं दूसरी ऐसी कुछ जानकारी भी देना चाहता हूँ जो गुजराती बहनोंके लिए विशेषतया विचारणीय है।

माननीय पण्डितजी[३]ने हिन्दू विश्वविद्यालयके लिए चन्दा देनेकी अपील करते हुए वहाँ स्वदेशीका प्रचार करने, करधोंकी प्रतिष्ठापना करनेकी बात की और कहा कि हिन्दुस्तानकी कुछ रानियाँ भी कातना सीखनेके लिए राजी हो गई हैं। तालियोंकी गड़गड़ाहटके बीच उन्होंने कहा कि जबतक हिन्दुस्तान के राजा-महाराजा चरखा नहीं चलायेंगे तबतक उन्हें शान्ति नहीं होगी।

पण्डितजीने ऐसा क्योंकर कहा? वे समझते हैं कि हिन्दुस्तानकी आर्थिक स्वतन्त्रताका आधार चरखों और हथकरघोंपर निर्भर है। जहाँ आर्थिक स्वातन्त्र्य न हो वहाँ या तो दूसरी तरह की स्वतन्त्रताकी आशा करना ही व्यर्थ है अथवा उसे प्राप्त करनेके लिए इंग्लैंडकी तरह उलटे-सीधे तौर-तरीके अपनाने पड़ते हैं।

इसी विचारसे प्रेरित हो डाक्टर माणेकबाई बहादुरजीने कातना सीख लिया है और हर रोज थोड़ा-बहुत कातती हैं। माणेकबाई बम्बईके भूतपूर्व एडवोकेट जनरलकी धर्मपत्नी हैं तथा प्रसिद्ध स्वर्गीय डाक्टर आत्माराम सगुणकी सुपुत्री हैं। उनकी तबीयत

  1. देखिए "शुद्ध स्वदेशी", ११-७-१९२० ।
  2. जिसमें कहा गया था कि श्री रेवाशंकर मेहता द्वारा घोषित किये गये पुरस्कारकी शर्तोंके अनुरूप श्री गणेश भास्कर कालेने एक चरखा बनाया है। देखिए खण्ड १६, पृष्ठ २२३-२४ ।
  3. पंडित मदनमोहन मालवीय।