पूरी तरह पहचान नहीं सका। किन्तु क्या इसलिए हम भी सहायता न करें? यह बात सच है कि कविश्रीकी कीमत पैसेमें नहीं आँकी जा सकती, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनेको पैसेसे उनकी सहायता करनेके दायित्व से मुक्त मानें। बल्कि इसका यह अर्थ है कि हम पैसेसे उनकी जितनी मदद करें उतनी कम है। मैं तो यही मानता हूँ कि उन्हें आनेका विशेष आमन्त्रण देनेके बाद गुजरातने जितना दिया है वह कम है। इसलिए "ताना देने" का प्रश्न ही नहीं उठता। गुजरात अन्य अनेक अवसरोंपर अपने कर्त्तव्यके प्रति जागरूक रहा है इसी कारण मेरे-जैसे भिक्षुक आगे भी उसी कर्त्तव्य-निष्ठाकी आशा रखते हैं। कविश्रीने कोई भिक्षा नहीं माँगी है; बल्कि शान्तिनिकेतनकी स्थितिका अवलोकन करने तथा श्री एन्ड्र्यूज द्वारा दिये गये वर्णनको पढ़ने के बाद मैंने ही गुजरातका ध्यान उसके कर्त्तव्यकी ओर दिलाया है। यह उत्तर लिखते समय मुझे सूचना मिली है कि बम्बईसे शान्तिनिकेतनके लिए १०,००० रुपये प्राप्त हुए हैं। यह रकम कविश्रीके [बम्बई] आनेके तुरन्त बाद ही इकट्ठी की गई थी। इससे जो जबरदस्त तंगीकी हालत थी वह दूर हो गई है। लेकिन इससे उन लोगोंको, जिन्हें मेरी माँग उचित जान पड़े, रुक जानेकी आवश्यकता नहीं है।
नवजीवन, १८-७-१९२०
४०. भाषण : कौंसिलोंके बहिष्कारपर[१]
१८ जुलाई, १९२०
गांधीजीने कहा कि कौंसिलोंसे सम्बन्ध न रखना भारतीयोंके नजदीक राष्ट्रीय प्रतिष्ठा एवं आत्म-सम्मानका विषय है और जबतक मार्शल लॉके अपराधियोंको दण्ड नहीं मिल जाता तबतक कोई भी आत्म-सम्मानकी भावना रखनेवाला भारतीय उनमें भाग नहीं ले सकता। उन्होंने कहा कि अंग्रेजोंकी अन्तरात्मा उदात्त है लेकिन दुर्भाग्यवश वे बेंथम, डारविन तथा भौतिकवादके अन्य प्रचारकोंकी लम्बी-चौड़ी बातोंमें आकर ईसामसीहके उपदेशोंसे दूर चले गये हैं। अंग्रेजोंके साझीदार बननेके लिए भारतीयोंको अपने में आत्म-सम्मान और मान-मर्यादाके गुण लाने होंगे; केवल यही अंग्रेजोंके दिलपर असर डाल सकते हैं। उनका दीन-हीन और लाचार बनकर रहना ठीक नहीं है।
प्रासंगिक रूपसे गांधीजीने कहा कि मैं अपने देशके कृषकोंको तथा अपने घरों और खेत-खलिहान के प्रति उनके प्रेमको अच्छी तरह जानता हूँ। मेरा खयाल है कि
- ↑ लाहौरमें; १८-७-१९२० को एक अनौपचारिक सम्मेलन आयोजित किया गया था और उसमें मार्शल लाॅके दौरान पंजाबमें हुए अत्याचारों तथा खिलाफत सम्बन्धी समझौते के प्रति विरोध प्रदर्शित करने के लिए नवनिर्मित कौंसिलोंके बहिष्कार के प्रश्नपर विचार-विमर्श हुआ था।