कर न देनेके परिणामस्वरूप उनकी अधिकारियोंसे टक्कर हो सकती है। इसलिए मैं उन्हें कर अदा न करनेकी सलाह नहीं दूँगा, क्योंकि यह तो मेरे कार्यक्रमकी अन्तिम मंजिल होगी।
हिन्दू, २०-७-१९२०
४१. पत्र : मगनलाल गांधीको
[१८ जुलाई, १९२० के बाद][१]
चरखेपर और कालेके ऊपर तो मैं बिलकुल मुग्ध हो गया हूँ। तुम भी बस उसीकी रट लगाते रहो। चरखके चित्रका और कालेकी तसवीरका ब्लाक बनवानेका काम अब भाई आनन्दानन्दको सौंपना। उनसे मिलना-जुलना भी। उनका जीवन-वृत्तान्त प्राप्त करना। उनकी पढ़ाई-लिखाई कितनी क्या है? चरखेका पेटेंट अपने नाम से लेना। कालेकी सम्मति मिले तो उसका नाम 'गंगाबाई चरखा' रखना। [किन्तु] उन्हें अपना नाम देनेकी इच्छा है। उनकी अभी भी यही इच्छा हो तो वैसा ही करना। चरखेपर नाम-धाम आदि सब देवनागरी और उर्दूमें लिखवाना। पेटेंटकी अरजी देनेमें ढील न करना। ट्रस्टकी बात मेरे ध्यानमें है।
बापूके आशीर्वाद
सौजन्य : राधाबे चौधरी
४२. पत्र : मगनलाल गांधीको
गुरुवार [१८ जुलाई, १९२० के बाद]
चरखे के बारेमें जितना सोचता हूँ कालेकी रचनापर उतना ही अधिक मुग्ध होता जाता हूँ। उनकी तबीयतकी देखभाल करते रहना। और पूनियाँ आदि बनानेके यन्त्रोंके नमूनोंकी आकृतियाँ भी उनसे तैयार करा लेना।
छोटालालसे कहना कि भाई विठ्ठलदास सारी खादी शीघ्र ही मँगवायेंगे। जिसमें ताना और बाना, दोनों हाथके सूतके हों, ऐसी खादी अपने पास ही बचा रखना।
- ↑ ऐसा लगता है कि यह और अगला पत्र १८-७-१९२० के नवजीवन में चरखेसे सम्बन्धित घोषणाके बाद लिखे गये थे। देखिए "स्वदेशी", १८-७-१९२० की पाद-टिप्पणी २ ।