रामजीभाईका खयाल रखना। वे आदमी सज्जन हैं। उनके १८ रुपये जमा रखना। इसकी एवजमें उन्हें सूत भेजना और उनसे बड़े अर्जका कपड़ा बुननेको कहना। वे बुन देंगे। अब हमारे पास बड़े अर्जकी ऐसी खादी जिसमें ताना-बाना, दोनों हाथके सूतके हों, होनी चाहिए। कताईका काम अहमदाबादमें शुरू नहीं किया तो धुनियेका बोझ बेकार ही उठाना पड़ेगा। जल्दी करना।
ट्रस्ट मेरे ध्यानमें है। एक मिनट भी खाली नहीं बैठता किन्तु लाचार हो जाता हूँ। आज सारा दिन 'यंग इंडिया' के लिए लिखता रहा; अब थक गया हूँ लेकिन पूरा कर डालूँगा।
बापूके आशीर्वाद
सौजन्य : राधाबेन चौधरी
४३. भाषण : रावलपिंडीमें[१]
१९ जुलाई, १९२०
अगर हिन्दु यह समझ जायें कि सात करोड़ मुसलमान उनके देशभाई हैं और वे उनके साथ दुश्मनी करके नहीं रह सकते तो यह निश्चय कर लेना उन्हें अपना परम कर्त्तव्य मालूम होगा कि उन्हें मुसलमानोंके साथ जीना है और उन्हींके साथ मरना है। मैं तालियोंकी गड़गड़ाहट नहीं चाहता, बड़े-बड़े जलसे भी नहीं चाहता, चाहता हूँ तो सिर्फ काम। अगर हिन्दू अपना कर्त्तव्य भूलकर मुसलमानोंके साथ इस प्रसंगपर कुर्बानी नहीं करते तो मैं उनसे कहूँगा कि आज जैसे इस्लामपर खतरा आया हुआ है वैसे ही किसी दिन उनके धर्मपर भी खतरा आयेगा। यूरोपके मित्र देशोंके मन्त्रियोंका खयाल है कि वे मुसलमानोंको वहाँसे निकाल बाहर कर सकते हैं, इसी तरह वे किसी दिन हिन्दुओंको भी गुलाम बनानेकी बात सोच सकते हैं। हमारा कर्त्तव्य है कि जबतक मुसलमान भाई अपने दीन और ईमानपर कायम रहकर कुर्बानी करनेके लिए तैयार हों तबतक हम हिन्दुस्तानकी आजादीकी खातिर उनके साथ डटे रहें।...
मैं पिछले तीस वर्षोंसे मुसलमान भाइयोंको जानता हूँ; और मैं इस बातके लिए उनपर कुर्बान हूँ कि वे हिम्मतका काम कर सकते हैं, बहादुरी दिखा सकते हैं; लेकिन मैंने यह भी देखा है कि जोश में आकर उन्होंने कई बार बहुत बड़े-बड़े काम कर डाले, मगर जोश ठंडा हो जानेपर उनकी काम करनेकी शक्ति ही चली
- ↑ महादेव देसाईके यात्रा-विवरणसे संकलित।