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भाषण : रावलपिंडीमें

जाती है। इस लड़ाईमें हमें कुर्बानी तो करनी ही है; हममें उस सल्तनतकी-सी काबिलियत भी होनी चाहिए जिसके खिलाफ हम जूझ रहे हैं; इस सल्तनतके सिपाही ठंडे दिमागसे, अनुशासन, समझदारी और बहादुरी के साथ लड़ते हैं। अगर आप उनके खिलाफ खड़े होना चाहते हैं तो आपको भी वही समझदारी, वही बहादुरी और वही अनुशासन सीखना चाहिए। अगर आप जोश में आकर अपने नेताके आदेशोंका पालन नहीं करेंगे तो आपको विजय नहीं मिलेगी। बहुत-से राष्ट्रोंको सिर्फ इसी कारण न्याय नहीं मिल पाया कि उन्होंने क्रोधसे काम लिया। ईश्वर भी उसी व्यक्तिको इन्साफ देता है जिसमें तदबीर है, हिम्मत है, सही ढंगसे काम करनेकी शक्ति है लेकिन क्रोध नहीं है। रावलपिंडीके हिन्दू और मुसलमान भाई काफी ताकतवर हैं। उनमें आपस में झगड़नेकी ताकत भी है। मेरी उनसे यह मिन्नत है कि वे कुर्बानीकी ताकत हासिल करें। मैं फिर कहता हूँ कि कुर्बानी तलवार खींचकर लड़ने को तैयार हो जानेमें नहीं है। तलवार उठा लेनेमें तो मुसलमान बड़े बहादुर हैं। उनकी तलवारकी ताकतके लिए मैं उन्हें मुबारकबाद देता हूँ, लेकिन उन्हें यह भी समझाना चाहता हूँ कि अगर आप तलवार चलानेकी ताकतकी कामना करते हैं तो आपके भीतर जान दे देनेका माद्दा भी होना चाहिए। पंजाबी तलवार उठाना जानते हैं, लेकिन मैं उनकी तलवारको भाड़ेकी तलवार मानता हूँ। भाड़ेकी तलवारसे किसीको डराया नहीं जा सकता। जो आपसे भी अच्छी तरह तलवार चलाना जानता हो आपकी तलवार उसके सामने बेकार हो जाती है, और आपके हाथसे तलवार छूटी कि आप भी असहाय हो गये। लेकिन मैंने ऐसा उपाय ढूँढ़ निकाला है जिससे आप अपनी तलवार म्यानमें रखकर लड़ सकते हैं। मुझे तो लगता है कि अगर आप तलवारका उपयोग करेंगे तो आपको पराजय ही मिलेगी। इतना ही नहीं, वह तलवार उलटकर आपके ही भाइयों और बहनोंकी गर्दनपर पड़ेगी। अगर आप असहयोगकी खूबी समझना चाहते हैं तो मेरा कहा मानिए। मैं 'कुरान शरीफ' की जानकारी रखनेका दावा नहीं करता, लेकिन आपके उलेमाओंका ही कहना है कि असहयोग एक बहुत जबरदस्त ढंगका जिहाद है। तलवार उठानेपर भी आदमी मरता ही है और असहयोग करनेपर भी मरता है। तो जिसमें दूसरोंको मारनेकी बात नहीं है, उस असहयोगको अपनाकर आप कुर्बानी क्यों न करें?

सुना है, पेशावरमें मुहाजरीनोंके ऊपर जो जुल्म किये गये हैं, उनको लेकर लोग बहुत उत्तेजित हैं; उनका खून खौल रहा है। मुझे लगता है कि मुहाजरीनोंका कोई दोष नहीं था; दोष अंग्रेज सिपाहियोंका ही था। लेकिन ऐसी गलत बातें हो जानेपर भी हमें धैर्यसे काम लेना चाहिए, उन्हें बरदाश्त कर लेना चाहिए। अगर आप यह निश्चय कर लें कि खूनकी नदी भले बह जाये, लेकिन हम अपनी मर्दानगी नहीं छोड़ेंगे, अपना आपा नहीं खोयेंगे बल्कि हिम्मतके साथ कुर्बानी करते रहेंगे तो आप तय मानिए कि आपको विजय मिलेगी ही।...

सरकार के साथ कोई सम्बन्ध नहीं रखना है, इसी सिद्धान्तको समझने में सच्चा सहयोग निहित है।...