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भाषण : गूजरखानमें

चाहिए जो आपकी धार्मिक भावनाओंके प्रति उदासीन है। यदि इससे भी काम न चला तो मैं किसानोंके पास जाऊँगा और उनसे सरकारको लगान न अदा करनेकी बात कहूँगा। परन्तु ऐसा तभी किया जायेगा जब मुझे आप लोगोंकी एकताके विषयमें विश्वास हो जायेगा।

श्री गांधीने आगे चलकर कहा कि श्री मॉण्टेग्युकी राय है कि मैंने अपने कर्त्तव्यका पालन किया है। लेकिन उनके नायबका मत है कि मुझपर पागलपन सवार है। मैं अपने निश्चयपर दृढ़ और अटल हूँ और फाँसीपर चढ़ने या निर्वासित किये जानेसे नहीं डरता। उन्होंने श्रोताओंसे कहा कि यदि मुझे, शौकत अली और डा॰ किचलूको फाँसी दे दी जाये या हम निर्वासित कर दिये जायें तो भी आप लोग शान्तिभंग न करें। पिछले वर्ष डा॰ किचलू और सत्यपालके निर्वासन के समय आपने ऐसा ही किया था; अब ऐसा नहीं होना चाहिए। मैं अपने भाइयोंकी सहायता करनेके लिए सदैव तैयार हूँ, चाहे जेलमें रहूँ अथवा उसके बाहर। जेलके बारेमें आपकी जो भी धारणाएँ हों परन्तु कारावास आततायियोंके अधीन भोगी जानेवाली स्वतन्त्रतासे बेहतर तो है ही। आप लोग अपने घरोंको जेल और जेलोंको महल मानें। आवश्यकता इस बातकी है कि मनमें दृढ़ता हो। मैं तालियाँ पीटने और बड़ी-बड़ी सभाएँ आयोजित करनेकी बहुत लाभदायक नहीं मानता। यह समय अमली काम करनेका है।

महात्मा गांधीने अपना व्याख्यान बैठे-बैठे दिया और चूँकि वे कुछ अस्वस्थ थे, इसलिए उन्होंने भाषण समाप्त होते ही श्रोताओंसे विदा माँगी। इसपर कैम्पबेलपुरके चार आदमी खड़े हो गये और कहने लगे कि हम लोग गांधीजीको कैम्पबेलपुर ले जानेके लिए आये हैं। गांधीजीने उनसे कहा कि आप उस स्थानपर आइये, जहाँ मैं ठहरा हुआ हूँ।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्स, १९२०