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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भावनासे प्रेरित होकर बरते जायें, तो ये संयम संयम न रहकर दरअसल भोग बन जाते हैं और इस कारण घातक साबित होते हैं। मगर जैसे-जैसे समय बीतता जायेगा, और नई-नई जरूरतें और प्रसंग सामने आते जायेंगे, वैसे-वैसे खान-पान और शादी-विवाह सम्बन्धी रीतियोंमें भी सावधानीसे सुधार करने या फेरफार करनेकी जरूरत पड़ेगी।

इस प्रकार में हिन्दू समाजके चार वर्णोंमें विभक्त होनेकी बातकी हिमायत करनेके लिए तो सदाकी भाँति आज भी तैयार हूँ और ‘यंग इंडिया’ में मैंने अक्सर यह बात कही भी है, लेकिन मैं अस्पृश्यताको मानवताके विरुद्ध एक जघन्य अपराध मानता हूँ। यह संयमका नहीं, बल्कि ऊँचेपनके अहंभावका द्योतक है। इससे कोई भी सदुद्देश्य पूरा नहीं हुआ है, उल्टे स्थिति यह है कि हिन्दुत्वकी किसी अन्य चीजने मानव-जातिके एक विशाल समुदायका ऐसा दमन नहीं किया है, जैसा इस अस्पृश्यताने किया है। दलित समुदायके लोग न केवल हर अर्थमें हमारे ही जितने अच्छे हैं, वे देशके जीवनके कई क्षेत्रोंमें बहुत ही जरूरी सेवा भी कर रहे हैं। अगर हिन्दुत्वको एक सम्माननीय और उदात्त प्रेरणा देनेवाले धर्मके रूपमें मान्यता प्राप्त करनी है तो इस पापसे वह अपने आपको जितनी जल्दी मुक्त कर ले उतना ही अच्छा। मुझे इस अभिशापको कायम रखनेके पक्षमें कोई भी दलील स्वीकार नहीं है, और इस पापमय प्रथाके समर्थनमें धर्मग्रन्थोंके संदिग्ध विधानको अस्वीकार करनेमें भी मुझे कोई संकोच नहीं है। सच तो यह है कि अगर ये विधान विवेक और हृदयकी आवाजके विरुद्ध हों तो मैं उन्हें अस्वीकार ही करूँगा। जब कोई सत्ता, कोई विधान, विवेक से उत्पन्न होता है तो वह कमजोरोंकी रक्षा करता है, उन्हें ऊपर उठाता है, लेकिन जब कोई विधान अन्तरके धीमे, शान्त मूकस्वरसे अभिषिक्त विवेकको अपने पास नहीं फटकने देता तो वह कमजोरों और असहायोंको नीचे गिराता है।

[अंग्रेजी से]
यंग इंडिया, ८-१२-१९२०

५८. भाषण: मुजफ्फरपुरमें

८ दिसम्बर, १९२०

अध्यक्ष महोदय तथा भाइयो,

खड़े होकर भाषण न दे सकनेके लिए आप कृपया मुझे क्षमा करेंगे। आपमें से अधिकांश लोगोंने मुझे देखा-जाना होगा। कुछ वर्ष पूर्व में मुजफ्फरपुरमें आया था सो मुजफ्फरपुर, तिरहुत या चम्पारन मेरे लिए नई जगहें नहीं हैं। चम्पारनके मेरे कामोंसे[१] लोग मुझे जानने लगे थे। किन्तु जो काम मैंने अब हाथमें लिया है, चम्पारनके मामलेसे वह कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है और कठिन है। आप सब जानते हैं कि हमारी

  1. गांधीजीने १९१७ में चम्पारनमें एक सत्याग्रह आन्दोलनका नेतृत्व किया था; देखिए खण्ड १३।